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दलित शब्द का वास्तविक अर्थ
दलित शबद का उपयोग अलग-अलग संदभभों में अलग-अलग अ्भों में किया जाता रहा है । अकसर इस शबद का प्रयोग एससी के संदर्भ में किया जाता है । कभी-कभी इसमें एससी और एस्टी दोनचों को सम्मशलत कर दिया जाता है । कुछ अनय मौकचों पर और अनय संदभभों में , इस शबद का इसतेमाल एससी , एस्टी ्व एसईडीबीसी तीनचों के लिए संयुकत रूप से किया जाता है । कभी-कभी इन तीनचों के लिए ' बहुजन ' शबद का इसतेमाल भी होता है । जैसा कि हम जानते हैं भारतीय समाज में दलित ्वग्थ के लिए अनेक शबद प्रयोग में लाये जाते रहे है , लेकिन अब दलित शबद स्व्थस्वीकार्य है । दलित का शालबदक अर्थ है - मसला हुआ , रौंदा या कुचला हुआ , नष्ट किया हुआ , दरिद्र और पीशडत दलित ्वग्थ का वयलकत । भारत में श्वशभन्न श्वद्ान श्वचारकचों ने दलित समाज को अपने - अपने ढंग से संबोधित ए्वं परिभाषित किया है । दलित पैंथर्स के घोषणा परि में अनुसूचित जाति , बौधि , कामगार , भूमिहीन , मज़दूर , ग़रीब - किसान , खानाबदोश , आशद्वासी और नारी समाज को दलित कहा गया है ।
' डिप्रेसि ' और ' सप्रेसि क्ासरेज '
डॉ . एनीबेसें्ट ने दरिद्र और पीडितचों के लिए ' डिप्रेसड ' शबद का प्रयोग किया है । स्वामी श्व्वेकानंद ने ' सप्रेसड कलासेज ' शबद का प्रयोग उन समुदायचों के लिए किया जो अछूत प्रथा के शिकार थे । गांधीजी ने भी इस शबद को स्वीकार किया और यह कहा कि ्वे निःसंदेह ' सप्रेसड ' ( दमित ) हैं । आगे चलकर उन्होंने इन वर्गों के लिए ' हरिजन ' शबद गढ़ा और उसका प्रयोग करना शुरू किया । स्वामी श्व्वेकानंद द्ारा इसतेमाल किए गए ' सप्रेसड ' शबद को स्वामी श्रधिानंद ने हिनदी में ' दलित ' के रूप में अनुदित किया । स्वामी श्रधिानंद के अछूत जातियचों के प्रति दपृलष्टकोण और उनकी से्वा करने के प्रति उनकी सतयशनषठा को डॉक्टर आंबेडकर और
गांधीजी दोनचों ने स्वीकार किया और उसकी प्रशंसा की । गांधीजी और आंबेडकर में कई मतभेद थे , परंतु स्वामी श्रधिानंद के मामले में दोनचों एकमत थे । बाबा साहेब आंबेडकर , महातमा फुले , रामास्वामी पेरियार ने इस बपृहत समाज के उत्ान के लिए उनहें समाज में उचित स्ान दिलाने के लिए बहुत संघर्ष किया । आज अगर दलित ्वग्थ में अधिकार और नयाय चेतना का श्वकास हुआ है तो ्वह इनहीं महानुभा्वचों के संघर्ष का सुफल है । हमारे लेखकचों , साहितयकारचों ने दलित समाज के कष्टचों , अपमान और संघषभों को अपनी लेखनी के माधयम से पूरे श्वश्व के सामने रखा । श्विेषकर दलित ्वग्थ के लेखकचों ने अपनी आतमकथाओं के द्ारा दलित समाज के कष्टकारक यथार्थ को बपृहद जनमानस के सामने ईमानदारी से प्रसतुत किया ।
मराठी िरेखकों की आत्मकथाएँ
कुछ मराठी लेखकचों की आतमकथाएँ सामाजिक-ऐतिहासिक दपृलष्ट से अतयंत महत्वपूर्ण हैं जिनकी चर्चा अतयंत आ्वशयक है । इनमें एक आतमकथा का शीर्षक है ' उपारा ' ( बाहरी वयलकत ) ( 1980 ) जो मराठी में लक्मण माने द्ारा लिखी गई थी । यह कृति केकाड़ी समुदाय के बारे में है । यह समुदाय महाराषट्र में एसईडीबीसी की सूची में शामिल है । यह एक ऐसा समुदाय है जिसे औपशन्वेशिक काल में आपराधिक जनजाति अधिनियम 1871 के तहत आपराधिक जनजाति करार दिया गया था । केकाड़ी , आंध्र प्रदेश के येरूकुला के समकक् हैं , जिनहें पू्व्थ में ' दमित जातियचों ' की सूची में शामिल किया गया था और बाद में एस्टी का दर्जा दे दिया गया । ये दोनचों कना्थ्टक के कोराचा , जो एससी की सूची में हैं और तमिलनाडु के कोरा्वा के समकक् हैं । कोरा्वा के कुछ तबकचों को एस्टी और कुछ को पिछड़ी जातियचों में शामिल किया गया है । अलग-अलग राज्यों में उनहें जो भी दर्जा दिया गया हो । इसमें कोई संदेह नहीं कि केकाड़ी समुदाय , समाज के सबसे निचले पायदान पर है और उनके जी्वन के बारे में लिखे गए साहितय को ' दलित साहितय ' कहा
ही जाना चाहिए , लेकिन ऊपर बताए गए सपष्टीकरण के साथ । प्रशसधि लेखिका महाश्वेता दे्वी ने लोध और सबर नामक एस्टी समुदायचों पर केलनद्रत कृतियाँ रची हैं ।
दलित साहित्य में सामनरे आ रहा सच
सामानयतः दलित शबद का इसतेमाल अनुसूचित जाति के लिए किया जाता है अर्थात उन जातियचों के लिए जो अछूत प्रथा की शिकार थीं । लेकिन समाज में आशद्वासी और अनेक घुमंतू जातियाँ भी शोषण का शिकार रहीं हैं । ्वे भी इस दायरे में शामिल हैं । इसलिए जब कोई वयलकत इस शबद का इसतेमाल अधिक वयापक अर्थ में करता है तब उसे यह अ्वशय सपष्ट करना चाहिए कि ्वह इसका इसतेमाल किस संदर्भ में कर रहा है । यह एक ऐसे दलित लड़के की कहानी है जिसके साथ एक ब्ाह्मण उसके द्ारा संसकृत शलोक उच्ारित करने के ‘ अपराध ’ में दुर्व्यवहार करता है । बाद में यह लड़का शिक्ा प्रापत कर जज बनता है । एक अनय पुराना उदाहरण है म्लाप्ले ( 1922 में प्रकाशित )। म्लाप्ले का अर्थ है – माला लोगचों का शन्वास
6 iQjojh 2023