इतिहासकारों नरे की दलितों की अनदरेखी
भारतीय इतिहास का उतपादन और उतखनन करते हुए श्विेषकर स्वण्थ पपृषठभूमि के इतिहासकार दलित पक् को सामने लाने से बचते रहे हैं । इतिहास के भारी-भारी ग्न्थों में बहुजन समाज के सुधारकचों , क्ांशतकारियचों , बुशधिजीश्वयचों और साहितयकारचों का शज़क् न के बराबर मिलता है । कहने का अर्थ यह है कि सामाजिक और ऐतिहासिक तौर पर दलित और उसकी उपलस्शत को हाशिये पर धकेलने का प्रयास किया जाता रहा है । एक तरह से उसकी बौशधिक अलसमता को भी ख़ारिज करने की पहलकदमी भी इतिहासकारचों की ओर से की गयी । मोहनदास
नैमिशराय ‘ भारतीय दलित आंदोलन का इतिहास ’ में सैकडचों बहुजन नायकचों की खोज कर उनकी बौशधिकता को सामने लाते हैं । इससे पता चलता है कि सामाजिक , सांसकृशतक और साशहलतयक दुनिया में बौशधिक निर्मितियचों में बहुजन नायकचों की कितनी अहम भूमिका रही है । ‘ भारतीय दलित आंदोलन का इतिहास ’ के दूसरे भाग में पेरियार ई . ्वी . रामास्वामी , जयदे्व प्रसाद , रामस्वरूप ्वमा्थ , ललाई सिंह , बाबू मंगल सिंह ज्टा्व , चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु , जनकश्व बिहारी लाल , छ्रिपति साहू जी महाराज , रमाबाई अंबेडकर , जायबई चौधरी से लेकर महाशय भिखुलाल चौधरी तक ना जाने कितने ही अलसमता्वादी नायकचों के योगदान को ्वो हमारे सामने प्रसतुत करते हैं ।
अस्मितावादी इतिहास की महत्वपूर्ण पुस्तस्तकाएँ
मोहनदास नैमिशराय अपने इतिहास लेखन में तीन सौ साल के बहुजन इतिहास को सामने रखने का प्रयास करते हैं । ्वह बताते हैं कि सैकडचों ऐसे दलित नायक और बुशधिजी्वी थे जिनकी राषट्र के निर्माण में अहम भूमिका रही है पर मुखयधारा के इतिहासकारचों ने अपने ग्न्थों में उनका शजक् तक करना मुनासिब नहीं समझा । हमें यह पुलसतका राधाबाई का्बले , तुलसाबाई बनसोडे , सुलोचनाबाई डचोंगरे , लक्मीबाई नाईक : पहली भिकखुणी , गीताबाई गायक्वाड , मिना्बाल शि्वराज , कौस्या बसंरिी , नलिनी लढ़के , मुकता साल्वे जाईबाई
iQjojh 2023 37