laikndh ;
तुलसीदासजी को समग्रता में देखिए ...
;
ह कोई पहला मौका नहीं है , जब रामचरित मानस और तुलसीदास पर हमला हुआ हो । लोकमानस के गहरे तक ईश्वर जैसी आस्ा और पैठ बनाने ्वाली इस रचना को जब तुलसी दास जब रच रहे थे , तब भी उसको चुराने की कोशिश हुई । उसे जलाने का भी प्रयास हुआ , उसे नष्ट करने की भी कोशिश की गई । लेकिन इसे संयोग कहें या दै्वीय कृपा .. कि यह रचना ना सिर्फ बची रही , बल्क अपनी रचना के बाद से ही सनातनी समाज को नैतिकता और लोकव्यवहार की अनूठी शिक्ा भी दे रही है । सनातनी समाज भी कहना , इसके प्रभा्व को कम करके आंकना होगा , बल्क कह सकते हैं कि यह पूरी मान्वता और ्वैश्विक समाज को सीख और प्रेरणा देती रही है । इस ग्ं् के प्रति लोक की आस्ा ही कहा जाएगा कि भारतीय धरती की सबसे जयादा बिकने और पढी जाने ्वाली यही रचना है । ढोल , गंवार , सूद्र , पसु , नारी । सकल ताड़न के अधिकारी ।।
इस चौपाई का सीधा अर्थ जो लगाया जा रहा है , उसे समझाना यहां जरूरी नहीं है । इसका जो नकारातमक भा्वार्थ इतना फैलाया गया है कि ्वह लोक में प्रचलित हो गया है । ्वाम ्वैचारिकी इसका सीधा-सीधा भा्वार्थ यही लगाते हैं कि तुलसीदास के मुताबिक , ढोलक , गं्वार यानी अनपढ किसम के लोग , शूद्र यानी सामाजिक तौर पर निचले तौर के लोग , पशु और लसरियां पी्टने के ही अधिकारी होते हैं । लेकिन इसका प्रसंग का ह्वाला नहीं दिया जाता है । इस चौपाई के ठीक पहले की चौपाई और इसके प्रसंग को बडी चालाकी से ्वाम ्वैचारिकी ने श्वमर्श में आने ही नहीं दिया । यह चौपाई लंका कांड का है , जब राम समुद्र से रासता मांगते-मांगते थक जाते हैं और समुद्र अपने अहंकार से बाज नहीं आता तो क्ोशधत राम समुद्र को ही नष्ट करने के लिए प्रतयंचा चढा लेते हैं । उसके बाद समुद्र खुद प्रग्ट होता है और जो कहता है , तुलसीदास ने इस प्रसंग में लंबा लिखा है । लेकिन इस कुचर्चित चौपाई के ठीक पहले की चौपाई पर भी धयान दिया जाना
चाहिए । तुलसी ने लिखा है- प्रभु भल कीन्हीं , मोध्ह सीख दीन्हीं । मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं ।।
समुद्र श्वनीत भा्व से राम को प्रसन्न करते हुए कह रहा है कि प्रभु आपने अच्ी सीख मुझे दी है , जिससे मैंने मर्यादा को समझा । इसके बाद ्वह कहता है , कि ढोल , गं्वार यानी अनपढ , शूद्र , जान्वर और लसरियां हमेशा धयान की मांग करती हैं ... यानी ्वे गलत ना कर सकें , इसलिए उन पर निगाह रखनी चाहिए और उनका धयान रखना चाहिए । मनुषय अपने बच्चों का , अपने परर्वार का धयान रखता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि ्वह उसे लगातार पी्टता रहता है , बल्क उसे सचेत करता रहता है । बहरहाल ्वाम ्वैचारिकी ने सिर्फ एक शबद ताडन को ले लिया और उसके बहाने पूरी सांसकृशतक परंपरा को ही तहस-नहस कर दिया । जबकि ऐसा नहीं है । ताडन शबद कुछ जगहचों पर धयान देने के अर्थ में आता है तो कुछ इलाकचों में गहरी नजर रखने के तो कई बार पी्टने और दंडित करने के अर्थ में आता है । लेकिन हमारी ्वैचारिकी के लोग भाषा के इस गुण को समझे बिना सिर्फ एक अर्थ में ले लेते हैं और लोगचों को गुमराह करते हैं ।
हिंदी में एक शबद है दारूण ... एक रचना है , जाको प्रभु दारूण दुख दीन्हां , वाकी मति पध्हले ्हरि लीन्हा ...
भा्वार्थ है कि ईश्वर जिसको दारूण यानी भयंकर कष्ट देने ्वाला होता है तो उसकी बुशधि पहले ही भ्रष्ट कर देता है ...
लेकिन बांगला में यही दारूण शबद सकारातमक भा्व देता है ... बंगाली समुदाय बोलता है ... कि दारूण च्टनी .. यानी जबर्दसत स्वादिष्ट च्टनी ... भाषा सिर्फ अर्थ नहीं देती , ्वह भा्व भी देती है ।
्वैसे रामचरित मानस में कई ऐसे प्रसंग हैं , जिनका उ्लेख ्वाम ्वैचारिकी कभी नहीं करेगी । क्योंकि इसमें सनातन की प्रतिषठा है , सामाजिक सौहार्द का ्वण्थन है ।
iQjojh 2023 3