बज्ट में गत ्वष्थ की तुलना में की गई क्टौती इसका साफ उदाहरण है । स्मेलन को संबोधित करते हुए सर्वोच् नयायालय के श्विेष आयुकत के पू्व्थ राजय सलाहकार सदसय बलराम ने कहा कि मनरेगा कानून मनरेगा श्रमिकचों को अपने ही रह्वास क्ेरि में प्रशत्वष्थ 100 दिन काम की गारं्टी देता है । पारदर्शिता और प्रशासनिक अधिकारियचों की ज्वाबदेही सुशनलशचत करता है । यह एकमारि देश का पहला कानून है , जिसमें ग्ाम सभाओं और पंचायतचों को सशकत करने का पूरा-पूरा मौका प्रदान करता है , लेकिन 14 वर्षों बाद भी सरकारी मशीनरी कानूनी प्रा्वधानचों को जमीनी धरातल पर उतारने में असफल हो रही है , जिसका सीधा असर राजय के उपेशक्त ग्ामीणचों खासकर मनरेगा श्रमिकचों पर पड रहा है ।
मजदूरी की दर करे प्ति नकारात्मक मानसिकता
सरकार का मजदूरचों के प्रति नकारातमक मानसिकता इस बात से साफ झलकती है कि आज राजय की नयूनतम कृषि मजदूरी अकुशल श्रमिकचों के लिए 257.29 रुपये है , जबकि यहां मनरेगा मजदूरचों को सिर्फ 171 रुपये दैनिक
मजदूरी दी जा रही है । यह देश के 29 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेिचों मंर सबसे कम मजदूरी है । बलराम ने कहा कि कानून में योजनाओं के चयन का अधिकार ग्ाम सभाओं को है , लेकिन राजय सरकार कानून लागू होने के समय से ही योजनाओं को ग्ामीणचों पर ऊपर से थोपने का काम करती रही है । एक समय सभी पंचायतचों में 50-50 कुंए खोदने का आदेश दिया । 2015-16 में सभी गां्वचों में डोभा खोदने का फरमान राजय से जारी किया गया । जबकि उसी ्वष्थ ग्ाम सभाओं ने अपने गां्वचों के लिए श्वशभन्न प्रकार की दस लाख से जयादा योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर चयन किया था । उन्होंने कहा कि संश्वधानिक संस्ा ग्ाम सभा के भा्वनाओं का इस तरह सरकार ठेस पहुंचाएगी तो ऊपर से थोपी गई योजनाओं के साथ जनता खुद को जोड नहीं पाती है और ऐसी मनरेगा योजनाएं बिचैलियचों की योजना बनकर रह जाती हैं ।
मनररेगा बना समस्ाओं का पिटारा स्मेलन में राजय के श्वशभन्न जिलचों से आए
लोगचों ने अपने-अपने श्वचार रखे । इसमें पिछले
पांच सालचों के दरमियान राजय के श्वशभन्न बैंकचों में मजदूरचों के करोड़ों रुपये रिजेक्टेड रहने तथा मजदूरी भुगतान लंबित रहने जैसे मुद्दों को रखा गया । सदस्यों ने यह भी बताया कि यहां इस राजय में शिकायत शन्वारण प्रणाली लगभग ध्वसत हो चुकी है । राजय ए्वं जिला सतर पर स्ाशपत ्टोल फ्ी नंबर में दर्ज शिकायतचों पर अधिकारी कोई कार्थ्वाई नहीं करते हैं । कानून की धारा 12 के तहत गठित राजय रोजगार गारं्टी परिषद की बैठक भी नियमित रूप से नहीं होती और इसमें लिए गए निर्णयचों पर भी समयबधि तरीके से अमल नहीं किया जाता । कानून की धारा 27 ( 1 ) में जन शिकायतचों के शन्वारण के लिए सभी जिलचों में मनरेगा लोकपालचों की नियुलकत अशन्वार्य की गई है , लेकिन पिछले तीन सालचों से अधिकांश जिलचों में लोकपाल के पद खाली पडे हैं । इसी प्रकार भारत सरकार और सामाजिक संगठनचों के वयापक दबा्व के बाद कानून की धारा 17 ( 2 ) के अनतग्थत ग्ाम सभाओं के माधयम से मनरेगा सकीमचों की नियमित सामाजिक अंकेक्ण 2017 से प्रारंभ की गई है । उसके बाद से योजना शक्यान्वयन से संबंधित तकरीबन साठ हजार से अधिक मामलचों की पुष्टि हुई है जिनमें करोड़ों रूपए की राशि के दुरुपयोग साबित हुए हैं । साथ ही राजय सरकार ग्ाम सभाओं द्ारा संपुष्ट और जयूरी सदस्यों द्ारा निर्णित अधिकांश मुद्दों पर ससमय कार्थ्वाई नहीं कर रही है ।
यानी समग्ता में समझें तो झारखंड में गरीबचों को समसयाओं से निजात दिलाने के बजाय मनरेगा खुद में ही समसयाओं का शप्टारा बन कर रह गया है । शनलशचत तौर पर इस मसले की अनदेखी का सीधा और बडा दुषप्रभा्व आम गरीबचों , मजदूरचों , दलितचों , आशद्वासियचों और ्वंचित तबके पर पडता है । ऐसे में आ्वशयक है कि इस मामले को गंभीरता से देखा जाए और ग्ाम सभाओं को पूरा अलखतयार देते हुए उनके हाथ मजबूत किए जाएं ताकि एक ओर ग्ाम स्वराज की संक्पना भी साकार हो और दूसरी ओर समाज के अंतिम वयलकत को पूरा हक मुहैया हो सके । �
iQjojh 2023 21