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जागरूक हो रहा है दलित मतदाता

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रतीय राजनीतिक डिस्कोर्स में दलित मतदाताओं का महत्व प्ारंभ से ही अतयतिक रहा है । हालांकि राजनीतिक क्ेत्र में लगातार यही कहा जाता रहा है कि जात-पात , पंथ या संप्दाय के डिस्कोर्स से राजनीति कको दूर रखना चाहिए । किन्तु यह के्वि श्रुति-स्मृति की बातें सरीखी ही प्तीत हकोती रही हैं । ्वास्तव में इस अलौकिक सिदांत कको व्यावहारिक रूप से लागू हकोता हतुआ कहीं भी नहीं देखा जाता है । यह सिलसिला ककोई नया नहीं है । स्वतंत्रता के बाद सत्ा संभालने ्वाली कांग्ेर ने चतुना्व के साथ जाति और धर्म कको अपना हथियार बनाया और समाज कको बाँटने की अप्तयक् राजनीति कको सत्ा प्ाप्त का माधयम बना दिया था । लेकिन 2014 के िकोकसभा चतुना्व के बाद से जाति-धर्म के आधार पर हकोने ्वाली राजनीति कको प्िानमंत्री नरेंद्र मकोदी ने साइड लाइन करना प्ारमभ किया , जिससे देश में त्वकास की राजनीति की एक नयी राह खतुि कर सामने आयी । आने ्वाले दिनों में उत्र प्देश सहित पांच राजयों में त्विानसभा के चतुना्व हकोने ्वाले हैं । प्तयेक चतुना्वी राजय में भाजपा जहां त्वकास के मतुद्े कको लेकर मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है , ्वही कांग्ेर ्व ्वामपंथी दलों के साथ क्ेत्रीय दल अभी अभी जाति-धर्म की राजनीति कको आधार बनाकर अपनी पाटटी के सिदांतों से हटकर सिर्फ दलित ्वग्स कको रिझाने की ककोतशश में जतुट गए हैं ।
उत्र प्देश में किसी समय दलितों की पाटटी समझी जाने ्वाली बसपा कतिपय कारणों से आने ्वाले चतुना्वी संघर्ष में खड़ी भी दिखाई नहीं दे रही है । किन्तु सपा और कांग्ेर सहित राजय के अनय छकोटे-छकोटे दल दलित ्वग्स के ्वकोटों पर अपनी दा्वेदारी ठोंक रहे हैं । कांग्ेर ने लंबे
समय तक उत्र प्देश में शासन किया , लेकिन असरी के दशक के बाद से कांग्ेर सत्ा से दूर हकोती चली गयी । राजय के क्ेत्रीय दलों के रूप में सपा-बसपा ने भी कई बार सत्ा की बागिकोर कको अपने हाथों में पकड़ा , लेकिन दलित ्वग्स के लिए न तको सपा की सत्ा काम आयी और न ही बसपा ने ऐसा कुछ किया , जिसे दलित ्वग्स के लिए एक बड़ी उपलब्ि के रूप में देखा जा सकता है । दकोनों ही दलों ने अपने-अपने कार्यकाल में दलित समाज कको महज एक ्वकोट बैंक की तरह इसतेमाल करके सत्ा का रतुख भकोगने के अला्वा ऐसा कुछ नहीं भी किया , जिससे दलित समाज की मूल समसयाओं का निदान हकोने में मदद मिलती । इसके त्वपरीत भारत के दिगगज नेता प्िानमंत्री नरेनद्र मकोदी जी ने सत्ा संभालने के साथ आर्थिक रूप से कमजकोर और दलित ्वग्स के लिए जिस तरह से जमीनी सतर पर काम किया गया , उसके रतुखद परिणाम दलित ्वग्स की जनता के बीच में जाकर कर जमीनी सतर पर भलीभांति देखा जा सकता है । केंद्र से लेकर प्देश में सत्ारूढ़ भाजपा सरकार की त्वकार्वादी राजनीति के समक् सभी दल बौने पड़ रहे हैं । मकोदी जी द्ारा दलितों के सममान , स्वाभिमान और हितों कको धयान में रखकर समग्ता में जमीनी सतर पर लागू की गई आ्वास यकोजना से लेकर शौचालय यकोजना , स्वास्थय ए्वं बिजली- पानी सहित उज्ज्विा , मतुद्रा और कौशल त्वकास सरीखी यकोजनाओं के साथ दलित ्वग्स का ऐसा जतुड़ा्व हतुआ है , जैसे दूलहा-दतुलहन सात जनमों के लिए जतुड़ जाते हैं । स्वाभिमान और सममान के साथ दलितों कको जी्वन जीने की व्यवसथा उनहें मकोदी जी के प्ति आजी्वन ऋणी हकोने का संकेत देती है ।
त्वकार्वादी राजनीति की काट तलाश पाने
में असफल त्वपक्ी दलों के सम्मुख पांचों राजयों में हकोने ्वाले त्विानसभा चतुना्व में भाजपा के प्ति दतुराग्हपूर्ण ढंग से भ्रम फैलाने कर राजनीतिक लाभ पाने के लिए एकजतुट हकोकर काम कर रहे हैं । झूठ और भ्रम के माधयम से दलित ्वकोट हासिल करने की यह ककोई नयी तकनीकी नहीं है । त्वपक्ी दलों के शीर्षसथ नेताओं कको शायद यह अहसास ही नहीं है कि 21्वीं सदी के भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कांतिकारी यतुग में अब दलित समाज की जनता कको भ्रमित करके मूर्ख नहीं बनाया जा सकता । यह एक कटु सतय है कि जको जिस तरह के बीज कको बकोता है , ्वह उसकी ही फसल काटता है । स्वतनत्र भारत में कांग्ेर ने दशकों तक झूठ , फरेब और दलितों की समसयाओं के प्ति के्वि नारे दिए , इसके त्वपरीत प्िानमंत्री मकोदी ने सिर्फ सात ्वर्ष में डिली्वरी दी है । कांग्ेर के राज में दिलिी से कागजों पर भेजे जाने ्वाले एक रूपया में से सिर्फ 15 पैसा ही ्वास्तव में पहतुँचता था , जबकि भाजपा शासन काल में पूरे का पूरा एक रूपया जमीन पर अंतिम वयपक्त तक पहतुंच रहा है । त्वकास की राजनीति कको ्वास्तविकता में अनतुभूत करने ्वाला दलित मतदाता भी अब सतर्क और दूर- दमृप्टयतुक्त बन चतुका है । ऐसे में दलित समाज कको सिर्फ ्वकोट बैंक की तरह इसतेमाल करने ्वाले राजनीतिक दलों की असलियत भी अब उनके सामने सप्ट हको चतुकी है । निसंदेह आने ्वाले चतुना्व में दलित ्वग्स अपने स्वत्व्वेक से निर्णय लेकर पांचों राजयों में ऐसी सरकार बनाने के लिए सहयकोग करेगा , जको उनके उतथान और त्वकास के बारे में ्वास्तविकता से रकोच कर काम कर सकें । आ्वशयकता यह भी है कि दलित ्वग्स के निर्णय में सहयकोग करने के लिए मीडिया भी अपने सतर से कदम उठाये , जिससे ्वास्तविक िकोकतंत्र की परिकलपना कको आसानी से साकार किया जा सके ।
प्स्तुतकता्साः डाँ विजय सोनकर शास्त्री पू्व्स संसद सदसय ( िकोकसभा )
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 3