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उफान पर उम्मीदें : सम्ान का सवाल

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रत में राष्ट्रपति के पद की अवधारणा बेहद विशिष््ठ है । यह देश का सववोच्च संवैधानिक पद है । वह प्रथम नागरिक हैं । तीनों सेनाओं के प्रमुख हैं । विधायिका और कार्यपालिका के संरक्षक हैं । 26 जनवरी , 1950 को संविधान के अस्ततव में आने के साथ ही देश ने ’ संप्रभु लोकतांतरिक गणराजय ’ के रूप में नई यारिा शुरू की । इसकी परिभाषा के मुताबिक गणराजय ( रिपब्िक ) का मुखिया निर्वाचित होने वाले जिसको राष्ट्रपति कहा जाता है । संविधान के अनुच्छेद 53 के तहत संघ की कार्यपालिका शक्त राष्ट्रपति में निहित है । अनुच्छेद 72 द्ारा प्रापत क्षमादान की शक्त के तहत राष्ट्रपति , किसी अपराध के लिये दोषी ्ठहराए गए किसी वयस्त के दंड को क्षमा , निलंबित , सीमित या समापत भी कर सकते हैं । मृतयुदंड पाए अपराधी की सज़ा पर भी फैसला लेने का अंतिम निर्णायक अधिकार भी उनहें ही है । अनुच्छेद 80 के तहत प्रापत शक्तयों के आधार पर राष्ट्रपति , साहितय , विज्ाि , कला और समाज सेवा में विशेष ज्ाि या वयावहारिक अनुभव रखने वाले 12 वयस्तयों को राजय सभा के लिये मनोनीत कर सकते हैं । अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति , युद्ध या बाहरी आक्रमण या सि्रि विद्ोह की स्थति में आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं । अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति द्ारा किसी राजय के संवैधानिक तंरि के विफल होने की दशा में राजयपाल की रिपोर्ट के आधार पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है । वहीं अनुच्छेद 360 के तहत भारत या उसके राजय क्षेरि के किसी भाग में वित्ीय संकट की दशा में वित्ीय आपात की घोषणा का अधिकार राष्ट्रपति को है । वह संसद के दोनों सदनों द्ारा पास किये गए बिल को अपनी
सहमति देने से पहले ’ रोक ’ सकते हैं । वह किसी बिल ( धन विधेयक को छोड़कर ) को पुनर्विचार के लिये सदन के पास दोबारा भेज सकते हैं । अनुच्छेद 75 के मुताबिक , ’ प्रधानमंरिी की नियुक्त भी राष्ट्रपति द्ारा ही की जाती है । यानी सामानय ि्दों में कहें तो राष्ट्रपति को देश का राजा कह सकते हैं जिनकी सहमति के बिना सत्ा या वयव्था में एक पत्ा भी नहीं खड़क सकता ।
इस सववोच्च पद के लिए चयनित होने वाले वयस्त के साथ समूचे देश का स्ेह , समर्थन और विशवास जुड़ जाना ्वाभाविक ही है । उस पर भी चयनित वयस्त यदि अपनी जाति , बिरादरी , भाषा , इलाके या वयवहारगत लगाव-जुड़ाव का हो तो फिर कहना ही ्या । ऐसे में राष्ट्रपति से उममीदें और अपेक्षाएं बढ़ जाना बेहद सामानय बात है । वह भी तब जबकि आजादी के 75 साल बाद अपने समुदाय के वयस्त को देश के सववोच्च पद पर पहुंचने का मौका मिला हो । हालांकि यह सही है कि राष्ट्रपति की जाति , बिरादरी , लिंग या अनय किसी भी आधार पर विवेचना करना उचित नहीं है । लेकिन मानव ्वभाव है कि वह अपनों में अपनापन ढ़ंढ़ता ही है । यह नजदीकी ही आधार बनती है आशाओं की , अपेक्षाओं की और उममीदों की । ऐसे में आज द्ौपदी मुर् मू के राष्ट्रपति बनने के बाद देश के करोड़ों वंचितों , शोषितों , पीड़ितों , महिलाओं और अनुसूचितों के मन में ‘ अच्छे दिनों ’ की जो आस जगी है और सभी सपने पूरे होने का जो विशवास जगा है उसमें कुछ भी नकारातमक , अ्वाभाविक या गलत नहीं है । हालांकि इस पद पहुंचनेवाले की भी अपनी सीमाएं हैं , मर्यादाएं हैं और जिममेदारियां हैं जिनहें किसी भी सीमित या संकुचित दायरे में बांध कर रखना उनके लिए संभव ही नहीं है । इसके बावजूद उनसे अपेक्षाएं सबको हैं और सबकी हैं ।
इस पर आसीन होने के बाद राष्ट्रपति के तौर पर द्ौपदी मुर्मू ने जो संवैधानिक शक्तयां पाई हैं उससे अलग हटकर भी देखें तो निजी एवं सार्वजनिक जीवन में संघर्ष की पराष््ठा के द्ारा उनहोंने जो सिद्धि प्रापत ही है वह न केवल प्रशंसनीय है बल्क आदरणीय और अनुकरणीय भी है । यही कारण है कि उनके साथ देश का समूचा आबाल-वृद्ध जनमानस एक अलग ही जुड़ाव और अपनापन का अनुभव कर रहा है । वह वयस्तगत तौर पर भी सबके लिए प्रेरणापुंज बन कर उभरी हैं । ऐसे में अगर कहीं भी या किसी भी ्तर पर उनके प्रति जाने या अनजाने किसी भी तरह ही ह्की या ओछी बात अथवा वयवहार का प्रदर्शन होगा , तो उसका आघात देश का प्रतयेक नागरिक अपने हृदय पर महसूस करेगा । इसके लिए कोई क्षमादान नहीं हो सकता । इस गलती का कोई प्रायसशित हो ही नहीं सकता । हालांकि द्ौपदी मुर्मू वयस्तगत तौर पर क्षमा कर सकती हैं । यहां तक कि गलती ्वीकार करके क्षमा मांगने पर संविधान और कानून भी क्षमा कर सकता है । लेकिन गणतंरि में सर्वाधिकार आम मतदाताओं के हाथों में सुरक्षित है और वे इसके लिए क्षमा कर दें यह संभव ही नहीं है । वह भी तब जबकि ऐसा करनेवाले के दल ने इस हरकत के लिए क्षमा याचना करना अथवा ऐसी गलती करने वाले को सांकेतिक दंड देना भी आवशयक नहीं समझा हो । इसलिए इंतजार करें आगामी चुनावों का जब जनता की अदालत में इंसाफ होगा और इस करतूत की सजा केवल गलती करने वाले को ही नहीं बल्क उसे संरक्षण देने वाले को और उसको शह देने वाले को भी अवशय ही मिलेगा ।
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