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दलित विषयक समझ vk

ज देश में दलितों के समस्या समयाधयान की दिशया में निरंतर एवं सतत् प्र्यास हो रहे हैं । किन्तु दलित वर्ग के समयालजक समस्याओं के समयाधयान कया भविष् के कयािखंड में समयाधयान हो सकेरया ..? इतनया ही नहीं बल्क यह अभी तक आभयास नहीं हो रहया है कि कबतक दलितों की समस्या कया समयाधयान होरया ? कब और दलित वर्ग कया समयालजक उत्थान होरया ? कब दलित वर्ग मतुख्धयारया में शयालमि होरया ? ऐसे बहतुत सयारे अनतुत्तरित प्रश्न हैं जिस पर गंभीरतया से चिंतन होनया ियालहए । वयासतलवकतया तो यह है कि आज समयाज में दलित सयालहत् की , दलित समस्याओं की और दलित इतिहयास इत्यादि की ििया्ग बडी प्रमतुखतया के सया् हो रही है । पर आशि््ग कया विषय यह है कि क्या समयाज भी दलित हो सकतया है ? क्या समस्याएं भी दलित हो सकती हैं ? क्या विकयास को भी दलित घोषित लक्या जया सकतया है ? क्या ऐतिहयालसक कयािखंड को दलित घोषित लक्या जया सकतया है ? मतुझे ऐसया लगतया है कि हमयारे अवचेतन मन — मलसतषक में कुछ ऐसी चीजें स्थापित हो ितुकी हैं जिन पर विशेष रूप से चिंतन लक्या जयानया आवश्क है ।
दलितों विषयक समस्या की वयासतलवकतया यह है कि समयाज में यह एक स्थापित मयानसिकतया ( मयाइंडसेट ) कया रूप ले ितुकया है । वयासतव में दलित विषयक समस्या कया नया विज्ञान से अथवया नया ही तर्क से कोई लेनया — देनया है । यह पूवया्गग्रह पर आधयारित एक आधयारहीन स्थापित मयानसिकतया है , जिसकया निदयान केवल इतनया है कि किसी भी विधि से इस समस्या कया निरयाकरण लक्या जयाए और स्थापित मयानसिकतया को बदिया जयाए । परन्तु जिस समयाज में एक समयाज को ही दलित घोषित कर लद्या जयाए और उस समयाज के विकयास को ही दलित विकयास कया रूप दे लद्या जयाए और इतनया ही नहीं बल्क भयारतीय इतिहयास में इतिहयास के एक हिससे को दलित घोषित करके उसे दलित संबोधन दे लद्या जयाए तो यह दलितों के प्रति स्थापित मयानसिकतया से कहीं ज्यादया गंभीर और नतुकसयानदेह है ।
उकत बयातों को सपषट करने के लिए मैं एक और उदयाहरण देनया ियाहतया हूं । जैसे हिनदू राष्ट्र की बयात हम करते हैं तो क्या यहयां पर केवल " हिन्दुओं के राष्ट्र " की क्पनया करते हैं ? ्या एक ऐसया राष्ट्र की जिसमें सभी वर्ग , सभी संप्रदया् और सभी जयालत के लोग निवयास कर सकते हैं । हम " हिन्दुओं कया राष्ट्र " नहीं बनया सकते , किंततु " हिनदू राष्ट्र " को बनयानया
बहतुत सरल है । उसी तरह " दलित समस्या " की बजया् " दलितों की समस्या " अथवया विशेष रूप " दलित विषयक समस्या " जैसे शबदों कया प्रयोग कर सकते हैं । दलित समयाज के स्थान पर दलित वर्ग के समयाज ्या दलितों के समयाज की क्पनया कर सकते हैं । दलित सयालहत् के स्थान पर दलित विषयक सयालहत् जैसे शबद कया प्रयोग लक्या जयाए तो ज्यादया श्े्सकर होरया । सयालहत् को कृपया करके हम दलित ्या अन्यान् अवधयारणया में न रखें । सयालहत् को सयालहत् ही रहने दें । सयालहत् विविध समयाज , वर्ग ्या कयािखंड के लिए अलग — अलग तो हो सकतया है किन्तु सयालहत् तो सयालहत् ही होरया न कि सयालहत् दलित अथवया उच्च हो सकतया है । सयालहत् को किसी भी रूप में दलित नहीं बनया्या जया सकतया है । इसी प्रकयार दलित इतिहयास के बजया् दलित समयाज के इतिहयास पर हमें चिंतन करने की आवश्कतया है । इतिहयास कैसे दलित हो सकतया है ?
डॉ आंबेडकर से ज्यादया दलित विषयक चिंतन कया प्रवयालहत श्ोत हमें अभी तक नजर नहीं आतया । डॉ . आंबेडकर ने सपषट रूप से ' शूद्ों की खोज ' नयामक पतुसतक में इस बयात कया उ्िेख लक्या है कि- ' आज कया दलित , प्रयािीन ्या वैदिक कयािीन शूद् नहीं है ।' ऐसे में दलितों के समयाज पर एक सयामयान् सी दृलषट डयािते हैं तो यही सपषट प्रतीत होतया है कि दलितों के वर्ग कया उदय मध्कयाि में हतुआ । भयारत सरकयार के गजट के अनतुसयार दलित समयाज में दलित वर्ग की वह जयालत्यां शयालमि हो सकती हैं जो असवचछ व्वसया् में संलिपत थीं अथवया जिन जयालत्ों के सया् असपृश्तया कया व्वहयार लक्या जयातया ्या । ऐसे में इन दो तथ्ों के आलोक में दलितों के समयाज , दलितों की समस्या , दलितों कया विकयास एवं दलितों के इतिहयास को बतुलन्यादी रूप से समझया जया सकतया है । दलित वर्ग के प्रति स्थापित मयानसिकतया को तोडनया और उस रिकत स्थान में दलितों के इतिहयास को रखनया और दलित वर्ग के पूर्वकयािीन गौरवशयािी इतिहयास को स्थापित करनया आज चिंतकों , विद्वतजनों , इतिहयासकयारों , समयाजसेवकों और दलित विषयक समस्या के समयाधयान ​ की दिशया में कयाम करनेवयािे जिज्ञासतुओं हेततु एकमयात्र मयार्ग है । आवश्कतया यह है कि दलित समयाज के प्रति स्थापित मयानसिकतया को मिलकर तोड़ा जयाए ।
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 3