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चौधरी , अंजनीबाई देशभ्रतार , विमल रोकड़े , मुकताबाई कामबले , जे . ईशिरी वाई , रजनी तिलक , मुकता सर्वगोड , शांताबाई दाणी , सखूबाई मोहिते पारवताबाई मेश्ाम , दम्यंती देशभ्रतार , चसनद्रका रामर्ेके , शुधिमती बोंधार्े , सुमन बंदिसोडे , भिकखुणी चनद्रशीला , बेबीताई कांबले शशिकला डोंगरदिवे लक्मी देवी र्म्टा : प्रथम दलित समपावदका , नागाममा और मवन्याममा आदि तीस-बत्ीस महिलाओं के जीवन संघर्ष से रूबरू करवाती है । अससमतावादी इतिहास की दृष्टि से ्ये पुससतकाएँ बड़ी महति की हैं । इन पुससतकाओं में बड़ी सहज और सरल भाषा में बहुजन ना्यकों के जीवन संघर्ष की महतिपूर्ण घर्नाओं को साफगोई के साथ प्रसतुत वक्या ग्या है । इन पुससतकाओं को इतिहास निर्माण के एक छोर्े प्रोजेक्ट के तौर भी देखा जा सकता है ।
दलितों और स््रियों के इक्तहञास की जञािकञारी
औपनिवेशिक भारत में सावित्ी बाई फुले ने सत्ी शिक्ा और उसकी वैचारिकी को धार देने में बड़ी भूमिका निभा्यी थी । औपनिवेशिक भारत में जब मिशनरर्यों की तरफ़ से सत्ी शिक्ा के लिए जनाना स्कूल खोलने पर बल वद्या जा रहा था तो उसी सम्य जोतीराव फुले ने ससत््यों के वासते स्कूल खोले थे । उन्नीसवीं
सदी में सत्ी शिक्ा का ्यह प्र्यास किसी बड़ी परिघर्ना से कम नहीं था । सावित्ी बाई ने इन स्कूलों में बालिकाओं को पढ़ाने का काम वक्या था । उन्नीसवीं सदी में किसी सत्ी का वशवक्का हो जाना मर्दवावद्यों के लिए बड़ी अचरज भरी बात थी । मर्दवावद्यों की ओर से उनहें अपमानित करने का प्र्यास भी खूब वक्या ग्या था । सावित्ी बाई फुले पुससतका में मोहनदास नैमिशरा्य सावित्ीबाई फुले के जीवन पर विविध पहलुओं पर सूत् रूप में प्रकाश डालते हैं । पहले तो मोहनदास नैमिशरा्य उनकी बौवधिकता और सृजन से पाठकों को तारुफ़ करवाते हैं । इसके बाद सत्ी वैचारिकी में उनकी भूमिका को रेखांकित करते हैं । औपनिवेशिक भारत में सावित्ी बाई फुले ने सन 1852 में महिला मणडल का गठन वक्या था । ्यह महिला अधिकारों और उनकी दावेदारी का सवाल उठाता था । इस मणडल के मंच से बालविवाह का विरोध और सत्ी शिक्ा का समर्थन वक्या जाता था । मोहनदास नैमिशरा्य बताते हैं कि ्यह मणडल विधवा पुनर्विवाह का प्रबल पक्धर था । इसी कड़ी में इस वरिषठ लेखक की दूसरी पुससतका ‘ हमने भी इतिहास बना्या ’ दलित सत्ी दृष्टि बड़ी महतिपूर्ण और मारक है । जो ्यह कहते हैं कि दलितों और ससत््यों का अपना इतिहास नहीं है , उनहें ्यह छोर्ी सी पुससतका जरूर पढ़नी चाहिए ।
दलित चेतिञा कञा क्िस्तञार करती पुस्स्तकञाएं
इस पुससतका में पहली दलित लेखिका मुकता सालवे के जीवन पर कम शबदों में गंभीर प्रकाश डाला ग्या है । इसके साथ ही प्रथम दलित संपादिका लक्मी देवी र्ामता के जीवन संघर्ष से भी परिचित करा्या ग्या है । मोहनदास नैमिशरा्य की ्यह छोर्ी सी पुससतका बताती है कि बाबा साहेब के निर्माण में उनकी महती भूमिका रही है । मोहनदास नैमिशरा्य का मत है कि माता रमाबाई साधारण जरूर थीं , लेकिन उनके व्यसकतति के भीतर असाधारण तति थे । मोहनदास नैमिशरा्य की इतिहास लेखन की ्यह कवा्यद बहुजन इतिहास लेखन की प्रक्रिया को विसतार देती दिखा्यी देती है । मोहनदास नैमिशरा्य की ्ये पुससतकाएँ अससमतावादी वैचारिकी की दृष्टि से बड़ी महतिपूर्ण हैं । ्ये पुससतकाएँ बहुजन समाज के बुवधिजीवि्यों के जीवन संघर्ष से तो परिचित करवाती ही हैं और चेतना का विसतार भी करती हैं । इसमें कोई दो रा्य नहीं है कि मुख्यधारा का इतिहास लेखन बहुजनों के ्योगदान पर मौन रहा है । जबकि मोहनदास नैमिशरा्य की ्ये पुससतकाएँ बताती हैं कि देश के निर्माण में बहुजनों का अमूल्य ्योगदान रहा है । �
48 दलित आं दोलन पत्रिका vizSy 2022