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दलित इक्तहञास लेखन कञा क्िस्तञार जञारी क्िस्ृत बहुजन िञायकों

करञा गञारञा इक्तहञास में हुए अन्याय कञा खुल रहञा कच्चा — चिट्ठा

सुरेश कुमार ch

सवीं सदी के आठवें दशक से दलित साहित्य का उभार एक बड़ी परिघर्ना थी । दलित लेखकों ने साहित्य और इतिहास के परिसर में अपने अलहदा अनुभव और नवाचार से हिंदी साहित्य को न्या आ्याम देने का काम वक्या है । दलित साहित्यकारों ने पहले तो अपनी आतमकथाओं से संसार को ्यह बता्या कि उनके ऊपर क्या गुजरी है । इसके बाद उनहोंने इतिहास और साहित्य से ओझल किए जा चुके बहुजन ना्यकों को सामने लाने के ऐतिहासिक काम को अंजाम वद्या । पिछले चार दशकों से दलित साहित्य में सक्रिय भूमिका निभाने वाले वरिषठ दलित चिंतक मोहनदास नैमिशरा्य लगातार लेखन से बहुजन इतिहास का उतपादन करते आ रहे हैं । इस विमर्शकार ने सन 2013 में ‘ भारती्य दलित आंदोलन का इतिहास ’ शीर्षक से चार खंडों में इतिहास ग्ंर लिखा था । मोहनदास नैमिशरा्य का ्यह अकादमिक इतिहास ग्ंर इतिहास की दुवन्या में मील का पतरर है । ्यह इतिहास ग्ंर केवल बहुजन समाज के सामाजिक राजनैतिक , साहित्यिक , सांसकृवतक इतिहास को ही सामने नहीं रखता है बसलक ्यह ग्ंर सिणणों के इतिहास और ज्ान की पैंतरेबाजी को भी हमारे सामने रखने का काम करता है ।
46 दलित आं दोलन पत्रिका vizSy 2022