eMag_April2022_DA | Page 3

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निर्णायक रही लाभार्थियों और आकांक्षियों की लामबंदी ika

च राज्यों के विधानसभा चुनाव का जो नतीजा सामने आ्या है उसको लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं । तमाम सतरों पर विभिन्न नजरिए से इस जनादेश का विशलेषण वक्या जा रहा है और इस जनादेश में छिपे निहितार्थ को समझने की कोशिश की जा रही है । खास तौर से सबसे अधिक हताश व निराश कांग्ेस दिखाई दे रही है क्योंकि इन चुनावों में भाजपा के अलावा कांग्ेस ही ऐसी पार्टी थी जो चुनावी राज्य में सत्ारूढ़ भी थी और जिसकी सबसे अधिक उममीदें इन चुनावों पर वर्की हुई थीं । लेकिन जहां एक ओर भाजपा शासित राज्यों में उसकी उममीदों को गहरा झर्का लगा वहीं पंजाब में उसे सत्ा गंवाने के लिए मजबूर भी होना पडा । ऐसे में सिाभाविक तौर पर कांग्ेस गहरे सदमे की ससरवत में है । तभी तो जनादेश के निहितार्थ को समझने के लिए पिछले दिनों कांग्ेस िवकिंग कमेर्ी की बैठक भी बुलाई गई और जलदी ही चिंतन शिविर का आ्योजन किए जाने की बात भी कही गई है ।
कांग्ेस को इन चुनावों में कितना गहरा सदमा लगा है इसका सहज अंदाजा इसी बात से लगा्या जा सकता है कि जहां एक ओर कांग्ेस अध्यक्ा श्ीमती सोवन्या गांधी ने इन चुनाव परिणामों को कांग्ेस के लिए दर्दनाक और चौंकानेवाला बता्या है वहीं दूसरी ओर पार्टी के शीर्ष संचालक कहे जाने वाले राहुल गांधी ने मा्यावती के उस डर को इसके लिए जिममेिार बता्या है जिसके कारण उनहोंने कांग्ेस के साथ गठबंधन नहीं करके भाजपा के लिए मैदान खुला छोडा वद्या । हालांकि परंपरा के अनुसार चुनाव में हार का सामना करनेवाले सपा के नेताओं ने ईवीएम को भी जिममेदार ठहरा्या है और कुछ छोर्े दलों ने गठबंधन के बावजूद सह्योगी दलों का परंपरागत जातिगत वोर् शिफ्ट नहीं होने की दुहाई भी दी है । लेकिन सही मा्यने में देखा जाए तो
इन चुनाव परिणामों की जो निषपक् समीक्ा होनी चाहिए थी उसका अभाव ही देखा जा रहा है । हालांकि इस ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्ी नरेनद्र मोदी ने बुवधिजीवि्यों से आग्ह भी वक्या था इसे आगामी लोकसभा चुनाव के नजरिए से भी जांचा परखा जाए । लेकिन पूिा्थग्ह पूर्ण सोच और अंधविरोध के नजरिए का नतीजा रहा कि मीवड्या और बुवधिजीवि्यों के बहुत बडे वर्ग् ने ऐसा नहीं वक्या । शा्यद इसलिए क्योंकि ऐसा करने से उनहें भाजपा की जनवप्र्यता में भारी वृवधि की सच्ाई को सिीकार करना पडता और आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ केनद्र की सत्ा में वापसी करने की पूर्ण संभावना को अभी से सिीकार कर लेना पडता ।
वजह चाहे जो भी , लेकिन सच ्यही है कि जनादेश के निहितार्थ और इसके भावी प्रभाव का निषपक् व तर्सर रूप से उस पैमाने पर नहीं हो पा्या है जो कि आवश्यक ही नहीं बसलक अपेवक्त भी है । सच तो ्यह है कि इस बार का चुनाव सरावपत फार् मूलों व मापदंडों के अलावा परंपरागत जातिवादी संकीर्ण सोच व मानसिकता और वोर्बैंक के वसधिांतों व समीकरणों के बने — बनाए खांचे से पूरी तरह बाहर निकल ग्या । जमीन की नबज पर नजर रखने का दावा करनेवाले आखिर तक ्यही समझते रहे कि इस बार के चुनाव में वपिडों , मुसलमानों , किसानों , गैर — राजपूत सिणणों और जार्ों का जो समीकरण तै्यार वक्या ग्या है वह ्यूपी और पंजाब से लेकर उत्राखंड तक में बडा कमाल दिखाने जा रहा है और जाती्य गुणा — भाग के आधार पर जमीन पर जो गोलबंदी की गई है वह भाजपा की उममीदों को चकनाचूर कर देगी ।
लेकिन सतह पर जो संभावनाएं दिखने का दावा वक्या जा रहा था उसकी गहराई से पडताल करने का प्र्यास भी नहीं वक्या ग्या । अगर ऐसा वक्या ग्या होता
तो पता चलता कि अब समाज में दो बडा वर्ग तै्यार हो ग्या है जो जातिवादी मानसिकता से ऊपर उठकर देख , समझ और परख कर अपना वोर् डालने के लिए कमर कस चुका है । वह दो वर्ग था लाभावर्थ्यों का और आकांक्षियों का । इनमें लाभारटी वर्ग भाजपा को परखने के बाद उससे संतुष्ट था जबकि आकांक्षियों ने अपने लिए विकलप खुला रखा था । ्यही वजह है कि जातिगत बेड़ियों को तोडकर लाभावर्थ्यों ने भाजपा के शासन वाले राज्यों में भाजपा को ही अपना समर्थन जारी रखा जबकि पंजाब में आकांक्षियों ने आम आदमी पार्टी द्ारा दिलली मॉडल को सामने रखकर किए गए वा्यदों को आजमाने का फैसला वक्या । ्यही वजह है कि भाजपा और आप को सभी जावत्यों का भरपूर वोर् मिला और जाति की दीवारें इस बार के चुनाव में पूरी तरह ढ़ह गईं ।
खास तौर से ्यूपी के नतीजों की विवेचना करें तो ्यह साफ हो जाता है कि इस बार भाजपा को सभी जावत्यों का वोर् मिला जिसके कारण सभी जावत्यों के प्रत्याशी पार्टी के वर्कर् पर सबसे अधिक जीत कर आए । केवल मुससलम समाज ऐसा रहा जिसके सभी 34 विधा्यक सपा के वर्कर् पर जीते हैं वर्ना इसके अलावा 52 ब्ाह्मण में से 46 , 49 राजपूत में से 43 , 41 कुमटी / सैंथवार में से 27 , 27 ्यादव में से 3 , 27 पासी में से 18 , 29 जार्ि में से 19 , 22 बवन्या में से 21 , 18 लोध में से 15 , 15 जार् में से 8 , 14 मौ्य्थ , कुशवाहा , शाक्य व सैनी में से 12 , 4 में से एक , 5 भूमिहारों में से चार , 7 गुर्जरों में से 5 , 7 कलवार , तेली व सुनार में से 6 , 8 निषाद , कश्यप और बिंद में से 6 के अलावा सभी 15 कोरी , बालमीवक , का्यसर व धोबी समाज के विधा्यक भाजपा गठबंधन के वर्कर् पर ही जीत कर आए हैं । ्यानी समग्ता में समझें तो इस बार का चुनाव वाकई ऐतिहासिक रहा है जिसमें जतिवाद की जडें पूरी तरह उखड गई हैं और लाभावर्थ्यों व आकांक्षियों की लामबंदी वनणा्थ्यक रही है । हालांकि ्यह अचानक ्या अप्रत्याशित नहीं हुआ है बसलक ्यह ट्ेंड 2014 से अब तक हुए सभी चुनावों में लगातार मजबूत होता ग्या है । लिहाजा आगे भी ्यही ट्ेंड जारी रहना त्य है और जातिवाद की ठेकेदारी को जनता आगे भी इसी तरह ठुकराती रहेगी ।
vizSy 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 3