eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 47

के चिनतन और दृष्टि को समझने के लिए यह धयान रखना जरूरी है कि वे अपने चिनतन में कहीं भी दुराग्ही नहीं है । उनके चिनतन में जड़ता नहीं है । डॉ . आंबेडकर का दर्शन समाज को गतिमान बनाए रखने का है । विचारों का नाला बनाकर उसमें समाज को डुबाने-वाला विचार नहीं है । डॉ . आंबेडकर मानते थिे कि समानता के बिना समाज ऐसा है , जैसे बिना हसथियारों के सेना । समानता को समाज के स्थाई निर्माण के लिये धार्मिक , सामाजिक , राजनीतिक , आसथि्णक एवं शैक्सरक क्ेत्र में तथिा अनय क्ेत्रों में लागपू करना आव्यक है ।
भारत के सवाांगीण विकास और राष्ट्रीय पुनरुत्थान के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण विषय हिंदपू समाज का सुधार एवं आतम-उदार है । हिंदपू धर्म मानव विकास और ई्वर की प्राकपत
का स्ोत है । किसी एक पर अंतिम सतय की मुहर लगाए बिना सभी रुपों में सतय को ्वीकार करने , मानव-विकास के उच्तर सोपान पर पहुंचने की गजब की क्मता है , इस धर्म में ! श्रीमद्गवदगीता में इस विचार पर जोर दिया गया है कि वयक्त की महानता उसके कर्म से सुनिश्रित होती है न कि जनम से । इसके बावजपूद अनेक इतिहासिक कारणों से इसमें आई नकारतमक बुराइयों , ऊंच-नीच की अवधारणा , कुछ जातियों को अछूत समझने की आदत इसका सबसे बड़ा दोष रहा है । यह अनेक सहस्ाक्दयों से हिंदपू धर्म के जीवन का मार्गदर्शन करने वाले आधयाकतमक सिंदातों के भी प्रतिककूल है ।
हिंदपू समाज ने अपने मपूलभपूत सिंदातों का पुनः पता लगाकर तथिा मानवता के अनय घटकों
से सीखकर समय समय पर आतम सुधार की इचछा एवं क्मता दर्शाई है । सैकड़ों सालों से वा्तव में इस दिशा में प्रगति हुई है । इसका श्रेय आधुनिक काल के संतों एवं समाज सुधारकों ्वामी विवेकानंद , ्वामी दयानंद , राजा राममोहन राय , महातमा जयोसतबा फुले एवं उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले , नारायण गुरु , गांधीजी और डा . बाबा साहब आंबेडकर को जाता है । इस संदर्भ में राष्ट्रीय ्वयंसेवक संघ तथिा इससे प्रेरित अनेक संगठन हिंदपू एकता एवं हिंदपू समाज के पुनरुत्थान के लिए सामाजिक समानता पर जोर दे रहे है । संघ के तीसरे सरसंघचालक बालासाहब देवसर कहते थिे कि ‘ यदि अस्ृ्यता पाप नहीं है तो इस संसार में अनय दपूसरा कोई पाप हो ही नहीं सकता । वर्तमान दलित समुदाय जो अभी भी हिंदपू है अधिकांश उनहीं साहसी रिाह्रारें व क्सत्रयों के ही वंशज हैं , जिनहोंने जाति से बाहर होना ्वीकार किया , किंतु विदेशी शासकों द्ारा जबरन धर्म परिवर्तन ्वीकार नहीं किया । आज के हिंदपू समुदाय को उनका शुरिगुजार होना चाहिए कि उनहोंने हिंदुतव को नीचा दिखाने की जगह खुद नीचा होना ्वीकार कर लिया ।
हिंदपू समाज के इस सश्तीकरण की यात्रा को डॉ . आंबेडकर ने आगे बढ़ाया , उनका दृष्टिकोण न तो संकुचित थिा और न ही वे ्क््ाती थिे । दलितों को सश्त करने और उनहें सशसक्त करने का उनका अभियान एक तरह से हिंदपू समाज ओर राष्ट्र को सश्त करने का अभियान थिा । उनके द्ारा उठाए गए सवाल जितने उस समय प्रासंगिक थिे , आज भी उतने ही प्रासंगिक है कि अगर समाज का एक बड़ा सह्सा शक्तहीन और असशसक्त रहेगा तो हिंदपू समाज ओर राष्ट्र सश्त कैसे हो सकता है ? वे बार बार सवर्ण हिंदुओं से आग्ह कर रहे थिे कि विषमता की दिवारों को गिराओं , तभी हिंदपू समाज शक्तशाली बनेगा । डॉ . आंबेडकर का मत थिा कि जहां सभी क्ेत्रों में अनयाय , शोषण एवं उत्ीड़न होगा , वहीं सामाजिक नयाय की धारणा जनम लेगी । आशा के अनुरूप उतर न मिलने पर उनहोंने 1935 में नासिक में यह
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