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दलित चेतना और डॉ आंबेडकर
सम्पूर्ण राष्ट्र बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की 130 वीं जनम जयंती मना रहा है । बहुआयामी वयक्ततव के धनी डॉ . आंबेडकर ने मानव कलयार के मपूलभपूत सिदांत को अपनाकर दलित समाज में जागृति लाने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन होम कर दिया । अभाव , अंधकार और शोषण में जीवन जीने वाले दलितों के कलयार के लिए जीवनयापन करने वाले डॉ आंबेडकर भारत के भवय भाल पर एक सुरमय तिलक की तरह है , जिनकी सत्यनिष्ा एवं दृढ़ता ने उनहें असाधारण बना दिया । दलित समाज के सवाांगीण विकास और कलयार के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले डॉ आंबेडकर सहित अनय विभपूसतयों ने जो प्रयास किए , उसके सकारातमक परिणाम भी दलित समाज में देखे जा सकते हैंI दलितों की नकारातमक स्थिति में आमपूलचपूल बदलाव लाने के लिए डॉ आंबेडकर ने जो राह दिखाई थिी , उस राह पर ्वतंत्रता के बाद कई दलित नेताओं ने चलने का दावा तो किया , लेकिन अधिकतर नेता दलित समाज के कलयार के स्थान पर अपने हित और स्वार्थ की ्पूसत्ण में लग गए । ्वतंत्रता के सात दशक से अधिक का समय बीतने के बाद भी अधिकांश दलित नेताओं के लिए दलित कलयार केवल राजनीति का विषय है । सत्ा सुख में डूबे नेता ्या वा्तव में जीवन के मपूल संघर्ष से जपूझ रहे दलित समाज को राह दिखा पाएंगे ? इस विषय पर दलित समाज को गंभीरता से विचार करना ही होगा ।
समाज विज्ान के दर्शन के अनुसार मानव समाज एक ऐसा समपूह है , जिसमें भिन्न-भिन्न वर्ग , समपूह और समाज के लोग एकजुट होकर एक साथि मिलकर जीवनयापन करता हैं । हर वर्ग , समपूह और समाज का अपना विशेष महतव होता है और इसलिए इसे अलग-थिलग नहीं किया जा सकता । समरसता , समभाव , समुचित भागीदारी आदि वह मपूल प्रश्न हैं , जिससे जुड़े प्रश्नों के उत्र तलाशने का प्रयास मानव समाज सैकड़ों वषषों से कर रहा है । डॉ आंबेडकर ने दलित अस्मता और सश्तीकरण से जुड़े ऐसे कई प्रश्नों का उत्र सामपूसहक मनोविज्ान की पैनी दृष्टि से देखने-समझने के बाद दिया । इसके विपरीत डॉ आंबेडकर के नाम पर ससरिय हुए कसथित दलित नेताओं ने मात्र अपने हितों के लिए डॉ आंबेडकर द्ारा प्रारमभ किए गए दलित आंदोलन का उपयोग अपने- अपने ढंग से किया । धर्म विरुद करने के लिए नास्तकता फैलाने , अपने सांस्कृतिक मपूलयों से घृणा सिखाने और केवल अपने क्ुद्र राजनीतिक लाभ के लिए कसथित दलित नेताओं ने दलितों को उनकी संस्कृति और विरासत से दपूर करने का कार्य जिस तरह से किया है , वह दलित समाज को कमजोर करने
का एक षड्ंत्र ही है । विचारधारा के नाम पर सामयवादी और समाजवादी राजनीतिक ततवों ने दलित समाज में रिांसत लाने का दावा तो किया है , लेकिन कसथित रिांसत का यह दावा दलितों को और अधिक कमजोर और दिशाहीन कर रहा है । जय भीम-जय मीम के तथिाकसथित गठबंधन के नारों की वा्तसवक सच्ाई दलित समाज के साथि-साथि ्पूरा देश देख रहा है ।
डॉ . आंबेडकर का कहना थिा कि संविधान की शक्त उसके संचालन में है । बाबा साहब के उ्त विचार के आधार पर आज हम गर्व से कह सकते है कि 2014 में सत्ा संभालने के बाद से मोदी सरकार लगातार संविधान की रक्ा करने और संविधान को अधिक शक्त के साथि प्रतिस्थापित करने में अपनी अहम भपूसमका का निर्वहन करती आ रही है । प्रधानमंत्री मोदी का ््ष्ट मानना है कि भारत का संविधान वैश्वक लोकतंत्र की सववोत्कृष्ट उपलब्ध है । यह न केवल अधिकारों के प्रति सजग रखता है , बकलक हमारे कर्तवयों के प्रति हमें जागरूक भी बनाता है । डॉ आंबेडकर के अनुसार किसी भी लोकतंत्र का निर्माण वहां के रहने वाले लोगों के सामंज्य और तौर-तरीकों से होता है । भारतीय समाज जीवन ्पूर्ण रूप से जातिवाद पर आधारित है , यदि समाज में निम्न वर्ग को सशसक्त कर देंगे तो हम जाति वयवस्था को समापत करने के साथि ही लोकताकनत्रक वयवस्थाओं को मजबपूत करेंगे और भारत के लोकतंत्र को सुरसक्त हाथिों में पंहुचा देंगेI इसलिए अब यह आव्यक हो गया है कि दलित समाज अपने उन कसथित नेताओं का बारीकी से मपूलयांकन करे , जो उनहें ्वसर्णम सपने दिखा कर दशकों से छलते आ रहे हैं । साथि ही दलित समाज को एकजुट होकर उन शक्तओं को भी जवाब देना होगा जो उनके कलयार और विकास के नाम पर अपना भारत विरोधी एजेंडा चलाने की कोशिश लगातार करते आ रहे हैं । दलित समाज में आज नेतृतव के अनेक ्तर उभरने से पैदा हुई वयक्तगत राजनीतिक महतवाकांक्ाओं की टकराहट दलित राजनीति को कमजोर कर रही है । ऐसे में यह भी आव्यक हो जाता है कि डॉ आंबेडकर के आदशषों के प्रति वा्तसवक रूप से अपनी प्रतिबदता दिखाई जाए और दलित राजनीति को महतवाकांक्ाओं की टकराहट , भाई- भतीजावाद , सत्ा प्राकपत की होड़ से दपूर करके , हम सब मिलकर उस भारत का निर्माण करने के लिए कार्य करें , जिस ्वसर्णम भारत का ्वप्न डॉ आंबेडकर ने देखा थिा । 130वीं जनम जयंती के अवसर पर यही बाबा साहब को सच्ी श्रदांजलि होगी ।
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