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भारत प्रथम की भावना के साथ पंच परिवर्तन
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रतीय संस्कृति का आधारभूत तत्व मान्व निर्माण है । समाज के अनुकूल मान्व निर्माण न तो एक दिन में होता है और न ही यह सरल कार्य है । मान्व निर्माण के लिए सनातन संस्कृति शतत् साधना का सन्देश िदेती है । मान्व निर्माण के साथ सजग-सफल-त्व्तसत समाज के लिए जिन तत्वों पर त्वचार किया जाता है , उनमें पांच प्रकार के सामाजिक परर्वतमान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । इन पांच प्रकार के परर्वतमान के माधयम सदे मान्व निर्माण सदे लदे्र संस्कृति और राष्ट्र निर्माण की यात्ा की जा सकती है । राष्ट्रीय स्वयंसदे्व् संघ के सथापना का सौ्वां ्वर्ष प्रारमभ हुआ है । ऐसदे शुभ अ्वसर पर संघ नदे स्वयंसदे्व्ों सदे समाज में पांच प्रकार के परर्वतमान की अपदेक्ाएं की है । समाज के पंच परर्वतमान अ्वधारणा के पांच आयाम हैं -सामाजिक समरसता , स्व का बोध अर्थात स्विदेशी , पयामा्वरण संरक्ण , नागरिक कर्तवय ए्वं कुटुमब प्रबोधन । इन आयामों को त्वतध्वत रूप सदे अनुपालन कर समाज में बडा परर्वतमान लाया जा सकता है ।
पंच परर्वतमान का पहला और मूल तत्व सामाजिक समरसता है । इसके अंतर्गत राष्ट्र के सभी नागरिकों हदेतु सामाजिक समता ए्वं सामाजिक नयाय सुनिश्चत किया जा सकता है । भारत की संस्कृति एक ही है और ्वह संस्कृति सनातन संस्कृति है । सनातन संस्कृति में कहा जाता है कि मनुष्य ही कया पेड़-पौधों सदे लदे्र चींटी तक , सभी में ईश्वर का अंश है । सनातन संस्कृति में के्वल जीत्वत ्वसतु ही नहीं , बल्् तनजजी्व ्वसतु में भी ईश्वर के अंश को िदेखा जाता है । ऐसी संस्कृति में जाति-भदेि जैसी कुरीतियों का कोई सथान नहीं है । नारद , ्वतशष््ठ , विश्वामित्र , अगसतय यह सभी ्वह ऋषि हैं , जिनहोंनदे समाज के अलग-अलग वर्गों में जनम लिया और अपनदे परिश्रम के कारण समाज में त्वतशष्ट सथान प्रापत किया । किसी भी सनातन ग्रनथ या शासत् में जाति का उल्लेख नहीं है । इसलिए इस त्वरय पर सभी को गहन चिनतन करके समरसता सथातपत करनदे के लिए मिल कर प्रयास करना होगा ।
पंच परर्वतमान के अंतर्गत दूसरी प्रतिबद्धता स्व का जागरण है । दैनिक जी्वन के उपयोग में स्व का समा्वदेश होना चाहिए । अपनदे घर , गां्व , जिला , राजय ए्वं िदेश में बनी ्वसतु का उपयोग करके स्विदेशी को बढ़ा्वा िदेना ही होगा , तभी राष्ट्र पुनर्निर्माण की प्रतरिया को गति मिलदेगी । उपतन्वदेश्वाद सदे मुशकत के लिए स्व-भाषा , स्व-्वदेश , स्व-भोजन , स्व-भ्रमण को अपनाना होगा । स्व अर्थात स्विदेशी अपनानदे सदे राष्ट्र का जो आर्थिक उतथान होगा , ्वह समपूणमा समाज को पोषित और समृद्ध करनदे में अपना योगदान करदेगा ।
पंच परर्वतमान के अंतर्गत तीसरी प्रतिबद्धता पयामा्वरण संरक्ण है । सनातन संस्कृति में मान्व और पयामा्वरण को एक-दूसरदे का पूरक के रूप में रदेखांकित किया गया है । ‘ माता भूमि : पुत्ोऽहं पृथिवया :’ अर्थात यह धरती हमारी मां है , हम सभी इसके पुत् हैं । इसदे धयान में रखकर पयामा्वरण संरक्ण के बिंदु पर कार्य करतदे हुए आगदे बढ़ना
होगा । त्व्ास आवश्यक है , लदेत्न त्व्ास और जी्वनशैली का आधार प्र्कृति के अनुरूप होना चाहिए । ्वतमामान उपभोग्वादी संस्कृति को सनातन संस्कृति नहीं कहा जा सकता है , बल्् यह त्व्कृति है । असीमित उपभोग के कारण प्र्कृति पर बोझ बढ़ गया है । ्वृक् लगाना , जल बचाना , पलाशसट् घटाना जैसदे त्वरय में कया किया जा सकता है ? आज संपूर्ण समाज को इस त्वरय में भी सोचनदे की आवश्यकता है । प्र्कृति के त्वरय में सनातन संस्कृति का त्वचार ' यत् पिण्डे तत् ब्रह्ाण्डे ' है अर्थात हमारदे शरीर में जो है , ्वह सारदे ब्रह्ां् में है । इसदे धयान में रखकर ही प्र्कृति के साथ व्यवहार करना होगा । पयामा्वरण संरक्ण भाषण का त्वरय नहीं , बल्् आचरण में लानदे का त्वरय है ।
पंच परर्वतमान का चौथा बिंदू कुटुंब प्रबोधन यानी परर्वार है । परर्वार भारतीय संस्कृति ए्वं परंपरा का मजबूत आधार है , लदेत्न यह दिन-प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है । इसलिए प्रत्येक शसथति में अपनदे पारर्वारिक मू्यों को संरतक्त करना होगा । जब एक परर्वार सशकत होता है तो समाज दृढ़ होता है और समाज की दृढ़ता सदे राष्ट्र शशकतशाली होता है । इसलिए परर्वार की अनिदेखी करना एक बड़ी हानि है । आज परर्वार के दायित्वों को लोग बंधन के रूप में लदेतदे हैं । लदेत्न ्वास्तव में ऐसा नहीं है । परर्वार बंधन नहीं है , बल्् यह मान्व जी्वन को सुचारू , वय्वशसथत , अनुशासित रखता है । परर्वार संस्ार को पीढ़ी दर पीढ़ी आगदे बढ़ानदे की दिशा में सभी को पहल करनी चाहिए ।
पंच परर्वतमान का अंतिम और महत्वपूर्ण भाग नागरिक कर्तवय है । आज सभी कर्तवय सदे पहलदे अधिकार को महत्व िदेतदे हैं । लदेत्न इस त्वरय पर कार्य करनदे की आवश्यकता है कि आम लोगों के मन-मशसतष्् पर अधिकारों के लिए संघर्ष के साथ ही भारतीय संत्वधान में उल्लतखत अनुच्छेद-51ए कर्तवय के प्रति समर्पित रहनदे के बीज कैसदे रोपित कर सकतदे हैं ? अगर सभी ्कृत-संकल्पत होकर कर्तवय का तन्वमाहन करतदे हैं तो अधिकार स्वत : प्रापत होंगदे । इसलिए पंच परर्वतमान का आरंभ भारत प्रथम भा्वना के साथ स्वयं करना होगा , तभी समाज में सकारातम् परर्वतमान को गति मिलदेगी । इसके लिए आवश्यक है कि राष्ट्रभशकत मात् हृदय में ही न रहदे , बल्् उसका प्रकटीकरण भी होना चाहिए । व्यवहार में पंच परर्वतमान को समाज में किस प्रकार लागू करना है , इसके लिए समसत भारतीय नागरिकों को मिलकर प्रयास करनदे होंगदे कयोंकि पंच परर्वतमान के्वल चिंतन , मनन अथ्वा चर्चा का त्वरय नहीं , बल्् इसदे हमें अपनदे व्यवहार में उतारनदे की आवश्यकता है । समाज की एकता , सजगता ए्वं सभी दिशा में निस्वार्थ उद्यम , जनहितकारी शासन ए्वं जनोनमुख प्रशासन स्व के अतधष््ठान पर खड़े होकर परसपर सहयोगपू्वमा् प्रयासरत रहतदे है , तभी राष्ट्रबल ्वैभ्व समपन्न बनता है ।
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