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अकसर हम समाजशा्त्रीय या राजनीतिक नजरिए से अतयदधक प्रभावित रहते हैं और आम भारतीय के मनोविज्ान को नजरंदाज करते हैं । यह एक अपराध है । इसके मदूल में अनय विचारधाराओं का षड्ंत्र भी काम करता रहा है ।
जो विचारधाराएं धर्म की सत्ता और
आस्तकता की शसकत को समापत करके किसी तरह का कालपदनक यदू्टोपिया लाने की तैयारी में हैं , उनहोंने पदूरे दलित आंदोलन को गलत ढंग से इ्तेमाल किया है । उनहोंने पदूरे दलित समाज में नास्तकता फैलाने और अपने-अपने सां्कृदतक मदूलयों से घृणा सिखाने , अपने राजनीतिक लाभ के लिए भोलेभाले दलितों को उनकी सं्कृदत और विरासत से ददूर करने का कार्य किया है । वह दलित समाज को कमजोर करने का ही एक षड्ंत्र है । इससे बहुत तरह के नुकसान हुए हैं । दलित सशकतीकरण की संभावना पर कुठाराघात हुआ है । सामयवादी और समाजवादी राजनीतिक दीवानों ने दलित समाज में कांदत की जैसी इबारत लिखी है , वह दलितों को और अधिक कमजोर और दिशाहीन करती जा रही है । एक राजनीतिक शसकत , जो दलितों के संगठन से पैदा हुई है , उसकी आंखें और कान इन नास्तकतावादी आंदोलनकारियों
और लोकलुभावन राजनेताओं ने बहुत पहले नोंच लिए ।
ऐसा मानने के कुछ आधारभदूत कारण हैं । उनहें भारत में घद्टत हुए अनय सामाजिक आंदोलनों की सफलता या विफलता की तुलना करके समझा जा सकता है । इसके लिए भारत में धर्म और परंपरा की शसकत को समझने का रुझान चाहिए , जो कि अकसर उच्च शिक्षित वर्ग में नहीं होता । विशेष रूप से वह वर्ग , जो समाज विज्ान की पढ़ाई करता है । उसमें तो धर्म और परंपरा के प्रति निंदा का भाव इतने गहरे बैठ जाता है कि वह इसका कोई सकारातमक उपयोग देख ही नहीं पाता । उसके लिए परंपरा या धर्म का मतलब एक लाइलाज बीमारी की तरह होता है । मगर वह भदूल जाते हैं कि वह भारत में बैठे हैं और जिस समाज को विकसित करना चाहते हैं वह मौलिक रूप से धर्म और परंपराओं में जीने वाला समाज है । आज तक इतने दशकों या पदूरी एक शताबदी में भी धर्म की पकड़ न तो सवर्ण समाज में कम हुई है , न ही दलित समाज में । कोई भी सामाजिक कार्य , जैसे-जनम से लेकर , शादी समारोह और अंतिम सं्कार तक में सभी जातियों की भागीदारी बनी हुई है । यही है हमारे समाज का वा्तदवक रूप ।
दलित राजनीति में शसकत संचय एक सफलता अवशय है , पर उसकी कोई दिशा नहीं है । सामयवादी या समाजवादी कांदत की शैली से प्रभावित दसद्ांतकारों ने दलित राजनीति को शसकतशाली बनाने में अवशय सकारातमक भदूदमका निभाई है , पर उसका बार-बार दुरुपयोग भी किया है । यह दुरुपयोग वैसा ही है जैसा मुस्लम वो्ट बैंक के साथि होता आया है । खुद दलित नेताओं में एक वयापक दिशाहीनता बनी हुई है । यह पदूरे भारतीय इतिहास में एक षड्ंत्र की तरह फैला हुआ है और इसके परिणाम हर काल में एक जैसे रहे हैं । जब भी दलित और वंचित समाज अपने सां्कृदतक मदूलयों को विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ता है , राजनीतिक शसकत के उपासक इसे शसकत के गणित में उपयोग करके नष्ट करते रहे हैं । इसका परिणाम यह हुआ है कि एक अंधी और बहरी राजनीतिक शसकत का जवार तो पैदा
हो गया है , लेकिन आंख और कान वाली दलित सं्कृदत का विकास नहीं हो पाया है ।
जब तक दलित समाज अपने पदूव्मजों , संतों और अपनी विरासत पर गर्व करना नहीं सीखता तब तक उसका वर्तमान और भविषय खुद उसकी नजरों में निंदित रहेंगे । ददूसरी जातियों और समाज का उनके बारे में कया मत है , वह भी दलितों की इस आतमहीनता की भावना से उपजता है । अगर दलित समाज और वयसकत खुद को असं्कृत , असभय और पिछड़ा मानता है तो सवर्ण समाज भी उसकी आंखों में इस हीनभावना को पढ़ कर उसी भाषा में उत्तर देने लगता है । यही एक अथि्म में पदूरे दलित समाज के पतन और दलन का मदूल कारण है ।
इतिहास साक्षी है कि शत्रु के शौर्य-कौशल से नहीं , बसलक हितैषियों की मदूख्मता से सभी साम्राजय ढहाए गए हैं । और यह मदूख्मता अगर षड्ंत्रपदूव्मक पैदा की गई हो तब तो इससे जितनी जलदी बच निकलें उतना ही श्ेय्कर है । इसीलिए आज के समय में हमारे सामने चल रहे राजनीतिक षड्ंत्रों से बच कर दलित समाज के सां्कृदतक पुनर्गठन की आवशयकता है । सभी दलित जातियों में संतों का एक विरा्ट साहितय है , जिसे प्राचीन और मधयकालीन इतिहास से सीधे उठाया जा सकता है । उसमें संतुलित और सदाचारी जीवन के सदूत्र बहुत दव्तार से समझाए गए हैं । ज्ान प्रापत करने और हलाल की कमाई से परिवार का पोषण करने सहित बच्चों और औरतों का नयायपदूण्म पालन-पोषण करने की बातें समझाई गई हैं । अंधविशवासों को तोड़ने और कुरीतियों से लड़ने की सीख हर संत के साहितय में बहुत सरल भाषा में दी गई है । इन संतों को एक माला में पिरो दिया जाए तो भारतीय दलितों के सां्कृदतक एकीकरण का प्रश्न बहुत आसानी से हल हो सकता है । उनमें शिक्षा और सदाचार को आसानी से स्थापित किया जा सकता है । इसी कम में एक सबल सं्कृदत के निर्माण का लक्य भी हासिल किया जा सकता है । फिर दलित वो्ट बैंक को मुस्लम वो्ट बैंक की तरह खिलौना बनाने से भी बचाया जा सकता है । �
fnlacj 2023 37