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प्रतीक्ा की घडी समाप्त रामलला पुनः विराजेंगे भव्य मंदिर में

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ततः वह समय आ गया , जब उत्तर प्रदेश स्थित अयोधया में आगामी 22 जनवरी को भगवान श्ीरामलला पुनः अपने भवय मंदिर में विराजेंगे । इस पल का इंतजार भारत ही नहीं , विशव के विभिन्न देशों में रहने वाले हिन्दू धर्म के अनुयायियों के साथि ही भगवान श्ीराम के प्रति आस्था और विशवास रखने वाले सभी लोग सदियों से करते आ रहे हैं । सभी के मन में विदेशी आकांता बाबर के प्रति कोध का भाव 21 मार्च 1528 से ही है कयोंकि इसी दिन बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने भगवान श्ीराम के मंदिर का विधवंस किया और हिनदुओं की आस्था को नष्ट करने के लिए बाबरी मस्जद का निर्माण कराया । बाबर ने बलपदूव्मक श्ीराम जनमभदूदम पर कब्ा तो कर लिया थिा , लेकिन पवित्र जनमभदूदम और भगवान श्ीराम को हिनदुओं के मन- मस्तषक एवं हृदय से निकालने में असफल रहा ।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान श्ीराम के ्वधाम गमन के बाद सरयदू नदी में आई बाढ़ के कारण अयोधया के वैभव को काफी क्षति पहुंची थिी । इसके बाद भगवान श्ीराम के पुत्र कुश ने अयोधया की विरासत को नए सिरे से सहेजा और भगवान श्ीराम की जनमभदूदम पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया । सदियों तक यह मंदिर अपने भवय ्वरूप में हिन्दू समाज के लिए आस्था-श्द्ा का केंद्र बना रहा । जब मंदिर जीर्ण-शीर्ण होने लगा तो 57 ईसा पदूव्म राजा दवकमादितय ने पुनः भवय मंदिर का निर्माण कराया । लेकिन मुसलिम आकांता बाबर ने मात्र अपनी संतुष्टि और मुसलिम धर्म के प्रचार- प्रसार के उद्ेशय से मंदिर को नष्ट कर दिया । हिन्दू समाज अपनी आस्था और जनमभदूदम पर बने मंदिर को भदूल नहीं सका और जनमभदूदम को पुनः हासिल करने के लिए संघर्ष जारी रहा Iइतिहास बताता है कि भगवान श्ीराम की जनमभदूदम को हासिल करने के लिए लगभग 76 युद् लड़े गए । अंग्ेजी शासनकाल के दौरान 1859 में जनमभदूदम स्थल को विवादित घोषित करके बाड़बंदी करा दी गई और परिसर के अंदरूनी दह्से पर मुसलिम को और बाहरी क्षेत्र में हिन्दू समाज को पदूजन करने का आदेश सुनाया , पर हिन्दू समाज ने इस निर्णय का प्रबल विरोध किया । 1885 में मंदिर-मस्जद का विवाद फ़ैजाबाद नयायालय पहुंचा तो अंग्ेजी नयायाधीश ने हिन्दू पक्ष की सभी अपील ख़ारिज कर दींI तब से लेकर 1 फरवरी 1986 तक क़ानदूनी लड़ाई
जारी रही और फिर फैजाबाद के जिला नयायाधीश के . एम . पांडे ने हिंदुओं को पदूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर लगे ताले को ह्टाने का आदेश सुना तो दिया , पर आदेश को मुसलिम पक्ष ने मानने से इंकार कर दिया ।
आखिर में हिन्दू समाज ने 6 दिसंबर 1992 विवादित बाबरी ढांचे को नष्ट कर दिया । उसके बाद विवादित स्थल पर भगवान श्ीरामलला की पदूजा-अर्चना प्रारमभ तो हो गई , लेकिन क़ानदूनी रुकाव्ट जारी रही । तारीख पर तारीख मिलती गई और सुनवाई होती रही । 2010 में इलाहाबाद उच्च नयायालय ने अपने निर्णय में विवादित भदूदम को सुन्नी वकफ बोर्ड , रामलला विराजमान और दनममोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर दह्सों में बां्टने का आदेश दिया , तो 2011 में उच्चतम नयायालय ने निर्णय पर रोक लगा दी । क़ानदूनी लड़ाई जारी रहने के बाद उच्चतम नयायालय ने 2017 में दोनों पक्षों के सामने समझौता करने का प्र्ताव रखा , लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका । अंततः चालीस दिन के सुनवाई के बाद 16 अग्त 2019 को उच्चतम नयायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया और फिर 9 नवमबर 2019 को पांच नयायाधीशों की पीठ ने श्ीराम जनम भदूदम के पक्ष में निर्णय करते हुए 2.77 एकड़ विवादित भदूदम हिंददू पक्ष को सौंप दी ।
यह वह क्षण थिा जिसके लिए हिन्दू समाज ने सदियों तक इंतजार किया , यह वह क्षण भी थिा जिसके लिए लगभग 160 वर्ष तक क़ानदूनी लड़ाई लड़ी गई , यह वह क्षण भी थिा जिसके लिए हजारों हिनदुओं ने अपना बलिदान दिया । और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अग्त 2020 को अभिजीत मुहदूत्म में श्ीराम जनमभदूदम में भवय श्ीराम मंदिर के निर्माण के लिए भदूदम पदूजन करने के साथि ही शिलानयास किया , जिसके बाद मंदिर निर्माण का काम प्रारमभ हुआ । सदियों तक हुए संघर्ष के बाद हिन्दू समाज अब अपने आराधय भगवान श्ीराम के मंदिर में होने वाले प्राण प्रतिषठा समारोह का इंतजार बेसब्ी से हर पल कर रहा है । आगामी 22 जनवरी को को श्ीराम जनम भदूदम अयोधया में भवय श्ीरामलला मंदिर का अभिषेक समारोह आयोजित किया जाएगा । यह सनातन हिन्दू समाज के लिए भसकत , खुशी और उतसाह का वह पल होगा , जिसका इंतजार लगभग पांच सदी से किया जा रहा थिा ।
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