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राष्ट्रवादी सोच का अभाव और राहुल गांधी dka
ग्रेस के नरेता और परिवारवादी राजनीति के आधुनिक प्रतीक राहुल गांधी के पास न तो जनता सरे जुड़ा कोई मुद्ा है और न कोई राष्ट्रवादी सोच । यही कारण है कि वह आए दिन वीर सावरकर और राष्ट्रीय सवयं सरेवक संघ के विरुद्ध हासयासपद बयान दरेतरे रहतरे हैं । वर्तमान में वह भारत जोड़ो नाम सरे एक यात्ा कर रहरे हैं । अब यहां भी उनकी सोच उजागर होती है । भारत जोड़ो नाम सरे उनकी यात्ा का औचितय कया है ? इसका न तो राहुल गांधी को पता है और न ही कांग्रेस और उनके सहयोगी वामपंथियों को मालूम है । अपनी कथित भारत जोड़ो यात्ा के माधयम सरे वह सिर्फ प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी , वीर सावरकर और राष्ट्रीय सवयं सरेवक संघ की आलोचना करतरे ही दिखाई दरे रहरे हैं । वैसरे कांग्रेस और उनके नरेताओं के लिए यह कोई नया खरेल नहीं है । बांटो और राज करो वाली राजनीति कांग्रेस का चररत् रहा है । दरेश के अंदर अगर सत्ा समबनधी रणनीति पर राजनीतिक दलों , विशरेष रूप सरे कांग्रेस , वामपंथी और कुछ क्षेत्ीय दलों पर अगर दृष्टि जाए तो कहना अनुचित नहीं लगता कि वषषों सरे एक षड्ंत् के रूप में हिनदू समाज को बांटकर , उसका उपयोग सत्ा हथियानरे के लिए किया गया ।
वर्तमान कांग्रेस पाटटी को जिस कालखंड में बनाया गया था , उस समय दरेश परतंत् था और अंग्रेज इस दरेश की पावन भूमि को रौंदतरे हुए अपनी सत्ा के माधयम सरे दरेश को बुररे ढंग सरे लूटनरे में लगरे िरे । ततकालीन समय में पूररे दरेश नरे जब अंग्रेजों की सत्ा और दरेश विरोधी कायषों का विरोध शुरू किया तो बड़ी सफाई के साथ , ततकालीन दौर के चंद कुलीन वगषों के लोगों को साथ में लरेकर 28 दिसंबर 1885 को अखिल भारतीय कांग्रेस नामक एक संगठन खड़ा किया गया । अंग्रेज शासकों के हितों और उनकी आकांक्ाओं की पूर्ति के लिए बनाए गए कांग्रेस संगठन में एक विदरेशी तथाकथित नरेता ए ओ ह्ूम की महतवपूर्ण भूमिका रही । प्रारंभिक दौर में कांग्रेस विदरेशी लुटेररे अंग्रेजी हितों के लिए काम करती रही । लरेतकन कांग्रेस संगठन में सदसयों की संखया जब बढ़नरे लगी तो संगठन को चलानरे वालों पर यह प्रश्न भी उठनरे लगरे कि आखिर कांग्रेस खुल कर अंग्रेजों के विरोध में कयों नहीं उतरती है ? नतीजा यह रहा कि कांग्रेस के अंदर " नरम " और गरम " नाम सरे दो दल बन गए । गरम दल के नरेता पूर्ण सवराज की मांग उठाकर संघर्ष छेड़ना चाहतरे िरे , जबकि नरम दल वालरे नरेता अंग्रेजों की सत्ा के अधीन रहतरे हुए , अपनरे हितों के अनुरूप दरेश में सिर्फ सवशासन की वयवसिा चाहतरे िरे । वषषों तक नरम-गरम दलों के बीच झूलती रही कांग्रेस , प्रथम विशव युद्ध तछड़नरे के बाद 1916 की लखनऊ में हुई बैठक में फिर एकजुट तो हो गयी । लरेतकन सवतंत्ता के उपरांत कांग्रेसी प्रधानमंत्ी नरेहरू जी नरे अंग्रेजों के सत्ा अनुभव सरे सबक लरेतरे हुए जाति वयवसिा को इस तरह सरे भारत
में पुष्ट किया कि जातिगत आधार पर दरेश के हर राजय में नए-नए संघठन खड़े होतरे चलरे गए । इन जाति आधारित संगठनों के कथित नरेताओं का लक्य अपनी जाति का समपूण्त विकास और कलयाण कभी नहीं रहा और वो केवल कांग्रेस की कठपुतली बनकर सत्ा की मलाई चाटतरे हुए बस सवतहत में ही लगरे रहरे । नरेहरू जी नरे जाति को सत्ा सरे जिस तरह जोड़ दिया था , उस रणनीति का अनुसरण नरेहरू जी के बाद श्ीमती इंदिरा गांधी नरे भी किया । आखिर कया कारण है कि वषषों तक " गरीबी हटाओ " का नारा दरेनरे के बावजूद दरेश सरे गरीबी कयों नहीं समापत हुई ? आखिर कया वजह रही कि संवैधानिक रूप सरे आरक्ण की सुविधा मिलनरे के बावजूद आज भी दरेश का दलित समाज सवयं को अभावग्सत महसूस करता है ? वह कौन सरे कारण हैं , जिनकी वजह सरे दलितों और जातिगत हितों के लिए जो नरेता सामनरे आयरे , वह अपनरे समाज का समपूण्त विकास करनरे में असफल सिद्ध हुए ?
ऐसरे अनरेकानरेक प्रश्नों का उत्र बहुत सपष्ट है । सवतंत्ता के बाद सरे कांग्रेस नरे सवयं को सत्ा के केंद्र में रखनरे के लिए हिनदू समाज को जहां उच्च-निम्न जातियों में बांट दिया , वहीं विभिन्न पंथों एवं महजब की कट्टरता के आधार पर गैर हिनदू जनता को बांट कर कांग्रेस दलित , मुषसलमों और ईसाई समूह की मसीहा भी बन गयी । कांग्रेस की हिनदू विरोधी रणनीति में सिर्फ धर्म एवं संस्कृति के कट्टर विरोधी वामदलों नरे उनका भरपूर साथ दिया । परिणामसवरुप दरेश के हर राजय में यानी उत्र सरे दतक्ण तक और पूरब सरे पषशचम राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लरेनरे वालरे विभिन्न राजनरेता , राजनीतिक दल एवं संघठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसनरे जाति-पांति , पंथ , तुष्टिकरण , क्रेत्वाद एवं परिवारवाद के मुद्दे सरे दरेश को बाहर निकलनरे नहीं दिया । दलितों के उतिान के नाम पर राजनीतिक दलों नरे दलितों का इस कदर शोषण किया कि वह आज भी समपूण्त दलित वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ रहरे हैं , पर उनके अधिकार आज भी पूरी तरह उनहें नहीं मिल सके हैं ।
कांग्रेस नरेता राहुल गांधी को अपनरे परिवार के इतिहास के बाररे में जानकारी जुटानी चाहिए । इसके विपरीत वह कभी वीर सावरकर तो कभी राष्ट्रीय सवयं सरेवक संघ तो कभी भारत के राष्ट्रवादी नरेताओं के विरुद्ध निरर्थक और निंदनीय टिपपणी करके एक विशरेष वर्ग को यह सन्देश दरेतरे रहतरे हैं कि कांग्रेस ही उनके हितों की सुरक्ा कर सकती है । लरेतकन 2014 के बाद सरे प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी नरे जिस तरह सरे सपूर्ण दरेश की जनता के हितों के लिए कार्य किया है , उसके सुखद परिणाम जनता सवयं दरेखनरे लगी है । यही कारण है कि राहुल गांधी और कांग्रेस के अनय नरेता सुशासन की सुखद तसवीर को दरेखनरे में असहज महसूस कर रहरे हैं ।
fnlacj 2022 3