वैक्सीन लेने को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता. अदालत ने भी इस आदेश को मौलिक अधिकार और निजता के अधिकार का हनन बताया है. ख़ास कर महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री श्री.राजेशजी टोपे इन्होने वैक्सीन लगवाने को लोगों की स्वेच्छा पर छोड़ दिया है. आप इसे ऐसे समझिए कि क़ानूनन कोई भी किसी को ज़बरदस्ती वैक्सीन लगवाने या वैक्सीन न लगवाने पर किसी का राशन या सार्वजनिक सेवाये बंद करने की धमकी देकर कोई आपको वैक्सीन लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.
कल्याणकारी योजनाएं हों या वैक्सीन देने की योजना, ये आजीविका और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण नहीं कर सकते. इसलिए टीका लगने और उसके नहीं लगने से आजीविका के ज़रिए पर प्रतिबन्ध लगाने के बीच कोई ताल्लुक ही नहीं है. कोई भी सरकारें महामारी रोग क़ानून के तहत नियम बनाने के लिए अधिकृत ज़रूर हैं मगर टीके को अनिवार्य करना तब तक ग़लत ही माना जाएगा जब तक ये ठोस रूप से प्रमाणित नहीं हो जाता कि वैक्सीन लगवाने के बाद कभी फिर से लोग कोरोना से संक्रमित नहीं होंगे. अभी तक ये भी पता नहीं चल पाया है कि जो टीके कोविड की रोकथाम के लिए दिए जा रहे हैं वो कितने दिनों तक प्रभावी रहेंगे. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लोगों को ये अधिकार है कि उन्हें कोरोना वायरस के टीके से जुड़े फायदे और नुक़सान के बारे में पूरी जानकारी दी जाए. लेकिन इसको लेकर कोई आंकड़ा अभी तक मौजूद नहीं है इसलिए लोगों को फ़ैसला लेने में परेशानी हो रही है. इस तरह से कोई आपको टीका लगवाने के लिएँ जोर-जबरदस्ती करे, तो घबराईये नहीं, मैं आपके साथ हूँ..
आपका,
प्रकाश पोहरे
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वैक्सीन लेने को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता. अदालत ने भी इस आदेश को मौलिक अधिकार और निजता के अधिकार का हनन बताया है.