BISWAS Biswas 20 | Page 167

अक्सर यह देखा गया है कि जब इन दवा कंपनियों का कारोबार धीमा या ठंडा हो जाता है, तो दुनिया में अचानक कई तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं. इन बीमारियों का इलाज इन कंपनियों की दवाओं में है. बहुत सारी बीमारियाँ हैं, वे अचानक जितनी तेजी से आती हैं और उतनी ही जल्दी गायब भी हो जाती हैं. बेशक उस के बीच इन कंपनियों की कलई खुल जाती है. ठीक ऐसा ही कोरोना के साथ हो रहा है.

जो जानकारी सामने आई है और न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के तहत जो चल रहा है, उसके कारण शायद तीसरा बूस्टर डोज़ देने के बाद यानि इन कंपनियों का 'टारगेट' पूरा होने के बाद, कई अन्य बीमारियों की तरह ही कोरोना भी गायब हो जाएगा. अथवा उसे वरना साधारण सर्दी-जुकाम के रूप में घोषित किया जाएगा. इस कोरोना के तहत 5जी तकनीक लाने की योजना बनाई जा रही है.

जॉर्जिया स्टोन के अनुसार, वर्तमान विश्व की 800 करोड़ की जनसंख्या को घटाकर 50 करोड़ करने की योजना है. तो यह मुद्दा बहुत गंभीर होने वाला है. विश्व बैंक के कर्ज में डूबे सभी गुलाम देश इस एजेंडे को आगे बढ़ने में सबसे आगे लगते हैं. वर्तमान में कई देशों को इन बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों ने टीकाकरण का लक्ष्य दिया है. भारत सरकार भी इसकी अपवाद नहीं है. अमुक कालावधि में अमुक टीकाकरण पूर्ण करवाने के लिए अप्रत्यक्ष दबाव डाला जा रहा है. आज कई कंपनियां अतिरिक्त टीके उपलब्ध कराने के लिए उत्सुक हैं. सच तो यही है कि लोगों ने टीका लगवाने के दौरान या उसके बाद, संबंधित व्यक्ति को कोरोना या अन्य दुष्प्रभाव (साइड-इफेक्ट्स) हुए, तो उसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी. ऐसा हलफनामा सरकार से मांगना चाहिए। जो रोग, सरल उपाय या बिना किसी इलाज के ठीक हो जाता है, तो इसके लिए टीकाकरण पर जोर क्यों डाला जा रहा है? लोगों को मुफ्त में वैक्सीन मिल रही है, तो भी सरकार को ये वैक्सीन खरीदनी ही पड़ती है और फिर सरकार के पास ऐसा कौनसा खजाना है? आखिरकार ये सारा पैसा अप्रत्यक्ष रूप से लोगों की जेब से ही तो निकाला जाएगा...!

एक तरफ सरकार ने इस टीके से किसी भी तरह के दुष्प्रभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा, ऐसा सुनिश्चित करना चाहिए, या फिर इस टीके (वैक्सीन) को वैकल्पिक / एच्छिक कर देना चाहिए. मूल रूप से कोरोना नामक बीमारी ही संदिग्ध है और इसके खिलाफ लगाए जा रहे टीके भी संदिग्ध हैं. इन टीकों के गंभीर दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं. खून के थक्के जमने से कई लोगों की मौत हो चुकी है. टीका लेने के बाद हाथ-पांव की अपंगता के उदाहरण भी देखने-सुनने मिल रहे हैं. यह भी समझा जा रहा है कि इन टीकों की वजह से प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. मूल रूप से कोरोना, फार्मा कंपनियों की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश है. कोरोना के टीके प्रमाणित भी नहीं है. इन सभी टीकों को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिली है और इन्हें आनन-फानन में दिया जा रहा है. ऐसे टीकों का प्रयोग पहले आठ-दस साल तक चूहों जैसे प्राणियों पर किया जाता है. जिन जानवरों पर ये प्रयोग किए जाते हैं, उन्हें 'गिनी पिग' कहा जाता है. कोरोना का आतंक दिखाकर इन दवा कंपनियों ने दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोगों को 'गिनी पिग' बना दिया है.

जलियांवाला बाग में हजारों लोगों का नरसंहार करने वाले भारतीय सैनिक ही थे. उस फायरिंग का आदेश देने वाला जनरल डायर एकमात्र अंग्रेज था! दुर्भाग्य से हमारे देश में भी कोरोना के झूठे डर की आड़ में ये विदेशी फार्मा कंपनियां अपने ही आदमियों के जरिए जनसंहार कर रही हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि जलियांवाला हत्याकांड गोलियों से किया गया था, जिसने देश में आग लगा दी और उससे ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंका गया. इसी तरह इस बार के नरसंहार को इंजेक्शन (वैक्सीनेशन) के जरिये अंजाम दिया जा रहा है. इसलिए जिन लोगों, अधिकारियों और राजनेताओं की आत्मा जीवित है, उन्हें इस जबरन या सख्ती के टीकाकरण के खिलाफ पहल करने की जरूरत है.

----------

मो. : 9822593921

इमेल : [email protected]

मूल रूप से कोरोना, फार्मा कंपनियों की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश ह