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सरकार ने दिसंबर के अंत तक शत-प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य रखा है. इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री ने हाल ही में टीकाकरण अभियान को लेकर पिछड़े जिलों के जिलाधिकारियों के साथ हाल ही में एक बैठक ली थी. उस बैठक के बाद लगता है कि इन सभी जिलों में संबंधित जिला कलेक्टरों ने टीकाकरण के लिए 'अवैध' जबरदस्ती करनी शुरू कर दी है.असली कोरोना टीकाकरण वैकल्पिक या ऐच्छिक है, ऐसा केंद्र सरकार ने खुद कोर्ट में माना है. किसी को भी टीका लगाने या टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. इसके लिए किसी भी नागरिक का अधिकार नहीं छीना जा सकता. इस बारे में जब मैंने खुद महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे से बात की, तो उन्होंने भी कहा कि कलेक्टर जो कर रहे हैं, वह गलत है और हम उन्हें तुरंत रोकेंगे. इसके बावजूद कई जिलों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण के लिए प्रशासन की ओर से अवैध दबाव बनाया जा रहा है. टीकाकरण का प्रमाण पत्र दिखाए बिना राशन नहीं मिलता, छात्रों को कॉलेज में प्रवेश नहीं दिया जाता, श्रावण बाल, संजय गांधी निराधार योजना जैसी गरीबों के पेट भरने वाली योजनाओं के लाभार्थियों को भी टीकाकरण हुए बिना अनुदान नहीं मिल रहा है. उसी प्रकार सरकारी कर्मचारियों को वेतन, सभी नागरिकों को ट्रेन यात्रा, मंदिर और मॉल में टीकाकरण प्रमाण-पत्र दिखाए बिना प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. यानी जब तक टीकाकरण का प्रमाण पास में नहीं है, तब तक न रेलवे में आरक्षण मिल रहा है, न विमान तक कोई पहुंच रहा है.

हो सकता है कि यह मनमानी और आगे तक बढ़े! पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस आदि भी टीकाकरण प्रमाण-पत्र दिखाए बिना प्राप्त नहीं किया जा सकेगा. यदि किसी सरकारी कर्मचारी ने टीकाकरण प्रमाण-पत्र अपने कार्यालय में जमा नहीं किया है, तो उसका वेतन रोकने के लिखित आदेश भी जारी किये गए हैं. जब केंद्र के अनुसार, टीकाकरण वैकल्पिक/ ऐच्छिक है, तो यह परोक्ष दबाव, मनमानी और रुकावट क्यों? ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार के सामने टीकाकरण का लक्ष्य, लोगों के स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने के लिए है या जनसंख्या को कम करने के लिए? जबकि इन टीकों के दुष्प्रभाव भारी संख्या में नजर आ रहे हैं. क्या कोरोना वैक्सीन मूल रूप से एक संपूर्ण वैक्सीन है? इस सवाल का जवाब आज तक किसी ने नहीं दिया. हालाँकि, कुछ स्पष्टीकरण आए भी, किन्तु वे अस्पष्ट हैं. टीकाकरण के बाद इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता कि संबंधित व्यक्ति को कोरोना नहीं होगा! लेकिन ऐसा होता है और मरीज की हालत गंभीर भी हो जाती है.

वहीं, हमेशा ही भ्रमित करने वाली भाषा और प्रतिशत के आंकड़े जारी किए जाते हैं, अर्थात टीका लगाए गए लोगों में दर इतनी है और न लगाए गए लोगों का प्रतिशत इतना है. जबकि टीकाकरण न कराने वालों की दर कुछ फीसदी अधिक ही होती है. इसका मतलब यह कि कोरोना से बचाव के तौर पर जो वैक्सीन दी जा रही है, वो कोरोना महामारी से बिल्कुल सुरक्षात्मक नहीं है और यदि नहीं है, तो टीकाकरण की जिद क्यों कि जा रही है? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है.

(लेखक :

प्रकाश पोहरे,

एडिटर इन चीफ, दैनिक ‘देशोन्नती’, हिंदी दैनिक ‘राष्ट्रप्रकाश’, सा.‘कृषकोन्नती’)