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भारत में इस समय कोरोना टीकाकरण अभियान जोरों पर है. इस अभियान को सफल बनाने के लिए सरकारी तंत्र और उसके अधिकारी जिस स्तर पर जा रहे हैं, उसे देखते हुए संजय गांधी यानी कांग्रेस के समय में चलाए गए नसबंदी अभियान की याद आए बिना नहीं रहती है. उस समय भी 'लक्ष्य' हासिल करने के लिए सरकारी मशीनरी और अधिकारियों को काम पर लगाया गया था. तब इन लोगों के पास और कोई काम ही नहीं था. नसबंदी का निर्धारित 'टारगेट' पूरा करने का एकमात्र कार्य (टास्क) उन्हें सौंपा गया था. शिक्षक, ग्रामसेवक से लेकर तहसीलदार, जिला कलेक्टर तक सभी पर केसेस पूरा करने का जबरदस्त दबाव था और उसमें से इन अधिकारियों ने भी नागरिकों की जबरन नसबंदी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. आज केंद्र की सत्ता में बैठी भाजपा, उस दौरान इस नसबंदी अभियान के खिलाफ सबसे आगे थी. लेकिन यही सब आजकल कोरोना- विरोधी टीकाकरण अभियान में होता दिख रहा है. इस कोरोना को लेकर एक बात बेहद हैरान करने वाली है.

इससे पहले मैंने इस विषय पर एक लेख लिखा था और वह था 'मिले सुर मेरा तुम्हारा...', जिसका अर्थ है कि अन्य समय में हर राजनीतिक दल लगातार दूसरे राजदलों पर हमला करते हैं. जब कोई इसे सूरज कहता है, तो दूसरा इसे चंद्रमा और एक यदि इसे पूर्व कहता है, तो दूसरा इसे पश्चिम कहता है. जबकि कोरोना के मामले में सभी राजनीतिक दलों का लहजा (सुर और ताल) एक जैसा है. महाराष्ट्र में बीजेपी के अलावा बाकी तीनों पार्टियों (शिवसेना, राकांपा, कांग्रेस) की सरकार सत्ता में है, लेकिन कोरोना के मामले में बीजेपी शासित अन्य राज्यों में जो हो रहा है और देश भर में जो चल रहा है, वही महाराष्ट्र में भी चल रहा है. यानी टीकाकरण की सख्ती! महाराष्ट्र के हालात इतने खराब हैं कि पिछले बीस महीनों में राज्य के मुख्यमंत्री कोरोना के डर से एक मंत्रालय ही ही नहीं गए हैं. अब जहां राज्य के मुखिया ही इस तरह से कोरोना की दहशत में हैं, तो वहां दूसरे लोग इसका गैरफायदा उठाएंगे ही. ऐसा ही कुछ अन्य राज्यों में भी यही सब टीकाकरण को लेकर हो रहा है. ऐसे में यही कहना सही होगा कि 'सब घोड़े बारह टक्के...!'

अफसरों की मनमानी पर सरकार की मौन सहमति....!