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टीका लगाने के बावजूद मास्क लगाना अनिवार्य है, सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है, फिर टीका लगाने का मतलब क्या है?

दरअसल, मैं लोगों की सहनशीलता और निष्क्रियता पर हैरान हूं. महीनों से सरकार और प्रशासन कोरोना के नाम से मनमानी कर अराजकता फैला रहे हैं, लेकिन कोई इसका विरोध करने के लिए सड़कों पर नहीं उतरा! मेरा मतलब यह है कि आप तानाशाही को स्वीकार करते हैं, जिसका सिस्टम ने फायदा उठाया है. दुनिया में जिस तरह का दंडात्मक शासन, सैन्य शासन, तानाशाही बनी है, वह हमारे 'विवेक' की कमी के कारण ही है. जिस क्षण लोग यह सोचने लगेंगे कि वे चौक में खड़े पुलिस से श्रेष्ठ हैं, इतना ही नहीं बल्कि हमारे द्वारा स्थापित शासकों से भी हम श्रेष्ठ हैं, तो दंड-सत्ता वाकई लोकतंत्र में बदल जाएगी. अगर पुलिस सामने है तो डरना, और अगर आप स्वंय गवाह हैं तो नहीं डरना... इस बात का संकेत है कि आप पुलिस को अपने से श्रेष्ठ मानते हैं और खुद को अपराधी मानते हैं. यही सूत्र सरकार के लिए भी लागू होता है. यह सच है कि शासक हमारी नीति के रक्षक हैं और हम स्वयं नहीं हैं! यह निर्णय ले लेने के बाद, क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हम पुलिस राज्य या दंड व्यवस्था स्थापित किये जाने की उम्मीद करते हैं! कोरोना के हौवे ने हमें खुद को घर में कैद रखने के बजाय यह दिखाने का मौका दिया कि हम 'ईमानदार' नागरिक हैं. लेकिन जिस तरह से सरकार ने 'दमनशाही' को बढ़ावा दिया है, वह बेहद दर्दनाक और चिंताजनक है.

डब्ल्यूएचओ, यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के इशारे पर काम करने वाले शासन ने अपना मुंह बंद कर रखा है. हमने व्यवस्था को दिखाया कि हम लगातार 'मुखौटा' (मास्क) बांधकर गुलामी स्वीकार कर सकते हैं, जिसे मैं बस 'गुलामी का थप्पड़' कहता हूं. मुंह को कपड़े बांधने से कोई वायरस नहीं फैलता, बल्कि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. कोरोना से बचाव के लिए मास्क पहनना मूर्खता की निशानी है. पुराने जमाने में गुलामों के सिर पर कपड़े बांधे जाते थे. उसी तरह आज भी सख्ती की मुखपट्टी (मास्क) लगाना, गुलामी की निशानी है. आखिर इस गुलामी की निशानी का आग्रह आखिर क्यों? यह आपको इससे पता चल गया होगा.

नौकरशाही के पास यह विवेक नहीं है कि उसे ये अधिकार क्यों सौंपे गए और उन अधिकारों को कैसे लागू किया जाए! तो इसका अनुभव महाराष्ट्र में आ रहा है. कोरोना टीकाकरण बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री समीक्षा (?) करते हैं और फिर अलग-अलग जिला कलेक्टर, अलग-अलग आदेश जारी कर रहे हैं ताकि हमारा जिला ऐसा न रहे! मानो हम एक तानाशाह देश में रह रहे हैं. लेकिन इस तरह के असंवैधानिक आदेशों का समर्थन कैसे करें, इतना आसान सवाल लोगों के दिमाग में नहीं आता, यह अजीब लगता है.

अगर कोई वैक्सीन, बिना जांच के इंजेक्ट की जा रही है और उसका प्रतिकूल असर हो रहा है, जो कई जगहों पर हुआ है, तो क्या वैक्सीन लागू करने वाले अधिकारी संबंधितों को मुआवजा देंगे? या ये अधिकारी क्या यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेंगे कि वर्तमान में उपलब्ध टीके 100 फीसदी सुरक्षित हैं? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बार टीका लगाने पर उसका प्रभाव कितने समय तक चल सकता है? इस पर विशेषज्ञों के बीच एकमत नहीं है. कोई यह कहने की हिम्मत नहीं करता कि एक बार टीका लग जाने के बाद दोबारा कोरोना नहीं होगा! टीका लगाने के बावजूद मास्क लगाना अनिवार्य है, सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है, फिर टीका लगाने का मतलब क्या है?