BISWAS Biswas 20 | Page 145

सरकारी अधिकारी/कर्मचारी ऐसे लोगों से नहीं मिलेंगे, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है. कॉलेज में प्रवेश नहीं मिलेग, ये प्रमाणपत्र, वो प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा. राशन नहीं मिलेगा. इसलिए ये हठधर्मी और निर्दयी मंडली गरीबों के भोजन और पानी को भी बन्द करने की धमकी देती है. आखिर इस पाप को कहां भुगतेंगे ये लोग?

वैक्सीन लगाए बिना न ट्रेन का टिकट, न बस का. न लोकल ट्रेन में प्रवेश, न सरकारी अस्पताल में इलाज, न प्रसूति, न पेट्रोल-डीजल, न जेरोक्स कॉपी! कल को वे कह सकते हैं कि वैक्सिनेशन के बिना विद्युत आपूर्ति और घरेलू पानी का कनेक्शन भी काट दिया जाएगा! मतलब यह कि वैक्सिनेशन के बिना हर जगह बाधाएं- अवरोध खड़े करना और ऊपर से यह कहना कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक या ऐच्छिक है..!

कल चल कर अगर 4-6 लोगों के सिर पर पिस्तौल लगा कर जबरदस्ती वैक्सीन लगाई जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा!

टीकाकरण के कुछ साल बाद इस टीके का मानव शरीर पर गंभीर प्रभाव देखा गया है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, 1968 से 2021 तक 53 वर्षों में केवल 2 लाख 72 हजार 694 लोगों को इन्फ्लूएंजा की दवा से एलर्जी हुई. और केवल एक वर्ष में 25 लाख 28 हजार 564 लोग इस दवा के कारण या तो मर गए या गंभीर रूप से बीमार हो गए.

देश में कई डॉक्टरों ने टीकाकरण पर अपने विचार व्यक्त किए हैं और दुनिया को टीकाकरण के बारे में चेतावनी भी दी है, जिसे जानबूझकर दुनिया से छिपाया गया. आधुनिक चिकित्सा प्रणाली ने हमेशा की तरह, एक स्व-घोषित राजा के रूप में अपनी तानाशाही जारी रखी है और रेमेडिसीवर जैसी नई-नई दवाओं का विपणन करना शुरू कर दिया, जिसने कई लोगों को मार डाला. फिर दवा कंपनियों को टीकाकरण का विचार आया. कोरोना तभी दूर होगा, जब कोरोना की वैक्सीन बाजार में उपलब्ध हो, इन कंपनियों और 'मॉडर्न मेडिसिन' ने ऐसा ही दावा किया. एक तरफ जहां टीकाकरण का विचार जोर पकड़ रहा है, वहीं दुनिया भर के वायरोलॉजिस्ट और बैक्टीरियोलॉजिस्ट अलग-अलग बातें कहने लगे हैं. इन विशेषज्ञों के अनुसार, टीकाकरण कोरोना के खिलाफ उठाया गया एक बहुत ही गलत और विनाशकारी कदम है. इसका मतलब यह है कि लोगों को निरर्थक चीजों में फंसाया गया और बेचारे लोग मर रहे हैं.

मुझे आश्चर्य है कि अगर सरकार की मौजूदा व्यवस्था, किसानों के कर्ज माफी के लिए ऐसी ही शिद्दत से काम करती, या भारी बारिश के कारण किसानों को हुए नुकसान को कवर करने के लिए काम करती, तो अनेक किसानों की आत्महत्या से टल सकती थी. यदि इसी तरह के प्रयास किए जाते तो रेत की चोरी रुक जाती. अगर गैंगस्टरों की बदमाशी के खिलाफ ऐसा ही कोई अभियान चलाया जाता, तो सारे गैंगस्टर जेल में होते. तब पूरी व्यवस्था में भी सुधार होता. हालांकि, कुशल प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने के लिए किया जा रहा है. सरकार छोटी-छोटी सफलताओं का श्रेय लेने के लिए अधिकारियों को प्रोत्साहित कर रही है. संकट के समय सरकार की बढ़ती तानाशाही को महसूस किया जा रहा है.

अवरोध खड़े करना और ऊपर से यह कहना कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक या ऐच्छिक है..!