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यही है दमनशाही !!

इतिहास के धागे को थामे रहने से ही वर्तमान बनता है और भविष्य इसी पर टिका है. आपने प्लेग के इतिहास के बारे में तो सुना ही होगा. इतिहास यह है कि पहला प्लेग सन 1897 में पुणे में सर्वप्रथम फैला था. सैकड़ों लोग अचानक इससे मर जाते थे.

सबसे पहले यह बीमारी हांगकांग से मुंबई तक पहुंची और मुंबई से यह तेजी से देश भर में फैल गई. मुंबई में प्लेग की खबर सुनते ही यूनाइटेड किंगडम की सरकार इस डर से परेशान हो गई कि इसका संक्रमण बिना जाने ही यूनाइटेड किंगडम में फैल जाएगा. इस पर समाधान के रूप में संगरोध, अलगीकरन (कवारेंटाइन) और कीटाणुशोधन थे. संगरोध तब होता है, जब उपनगरों से एक आदमी एक गांव में प्रवेश करता है और बीमारी से ठीक होने के लिए कुछ दिनों के लिए अलग जगह पर रहता है. अलगीकरन, एक ऐसे व्यक्ति को अलग करने की प्रक्रिया है जो वास्तव में बीमार है और उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है और उनके परिवार के सदस्यों को कुछ समय के लिए अलग शिविर में रखा जाता है और डिसइंफेक्शन का मतलब उस घर की सफाई और डिसइंफेक्शन करना है जहां मरीज रहता है.

ये बातें सैद्धांतिक रूप से ठीक थीं. लेकिन उनके कार्यान्वयन को अत्याचार से प्रभावित किया गया था. इस बीमारी को मिटाने के लिए सरकार ने लोगों पर जबरन क्रूर, अकल्पनीय व्यवहार थोपना शुरू कर दिया था. नियुक्त प्लेग आयुक्त और उनके नौकरशाह सचमुच हंगामा व अत्याचार करते थे.

ब्रिटिश सरकार के अधिकारी इतने ढीठ हो गए थे कि उन्होंने प्लेग पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार के साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार करते थे. वे लोगों के घरों में सेंध लगाते थे, वे उनकी संपत्ति को नष्ट करना चाहते थे, वे जहां चाहते वहां पहुंच जाते थे, वे उनका हाथ भी थामते थे और वे उन्हें घसीटकर ले जाते थे! उन्हें आवेदनों-निवेदनों और वादी की कोई चिंता नहीं थीं. उनके साथ एक यमदूत की तरह व्यवहार किया जाता था.

ऐसी ही अराजकता 1975 के आपातकाल के दौरान नसबंदी के मामले में देखी गयी थीं. तब संजय गांधी ने नसबंदी को अनिवार्य करते हुए कहा था कि अगर देश को विकास की ओर ले जाना है, तो जनसंख्या को नियंत्रित करना होगा. साथ ही झुग्गियों को साफ करने का जुल्मी निर्णय लिया गया था. इन सभी फैसलों को मनमाने ढंग से और तानाशाही तरीके से लागू किया गया. उनके अधीनस्थ नौकरशाही बलपूर्वक यह सब कर रही थी. ये दोनों बातें दिमाग में इसलिए आती हैं, क्योंकि आज के सरकार के कोरोना टीकाकरण कार्यक्रम पर नजर डालें तो ऐसा ही लगता है. टीका लगवाएं, नहीं तो सैलरी नहीं!

प्रकाश पोहरे

संपादक : दैनिक देशोन्नती तथा

हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश

यही है

दमनशाही !!