संघ की खदुले दिल से सराहना दक्लत राजनीक्त करने वाले तमाम दल
और नेता सेवा-बस्तियनों में सवा्वक्धक सेवा- कार्य करने के बावजूद आज भी संघ को प्रायः असपृशय समझते हैं, परंतु उललेखनीय है क्क डलॉ अंबेडकर संघ के काय्वरिमनों में तीन बार गए थे । क्वजयादशमी पर आहूत संघ के एक वाक्ष्वक आयोजन में वे मुखय अक्तक्् की हैक्सयत से सन्ममक्लत हुए । उस काय्वरिम में लगभग 610 सवयंसेवक थे । उनके द्ारा आग्हपूर्वक पूछे जाने पर जब उन्हें क्वक्दत हुआ क्क उनमें से 103 वंक्चत-दक्लत समाज से हैं तो उन्हें सुखद आशचय्व एवं संतोष हुआ । सवयंसेवकनों के बीच सहज आतमीय संबंध एवं समरस वयवहार देखकर उत्हनोंिे संघ और डलॉ हेडगेवार की सार्वजक्िक सराहना की थी ।
भारत की सनातन धारा के अनदुगामी
ततकालीन क्हंदू-समाज में वयापत छुआछूत एवं भेदभाव से क्षुबध एवं पीड़ित होकर उत्हनोंिे अपने अनुयाक्ययनों समेत अपना धर्म अवशय परिवक्त्वत कर क्लया, परंतु उनके धर्म-परिवर्तन में भी एक अंतदृ ्वन्ष्ट झलकती है और ऐसा भी नहीं है क्क उत्हनोंिे यह सब अकसमात एवं तवरित प्रक्तक्रियावश क्कया । पहले उत्हनोंिे क्िजी सतर पर सामाक्जक जागृत्ति के तमाम काय्वरिम चलाए, ततकालीन सामाक्जक-राजनीक्तक नेताओं से बार-बार वंक्चत-शोक्षत समाज के प्रक्त उत्म वयवहार, न्याय एवं समानता की अपील की । जब उन सबका वयापक प्रभाव नहीं पड़ा, तब कहीं जाकर अपनी मृतयु से दो वर्ष पूर्व उत्हनोंिे अपने अनुयाक्ययनों समेत धर्म परिवर्तन क्कया । पर धयातवय है क्क उत्हनोंिे भारतीय मूल के बौद्ध धर्म को अपनाया, जबक्क उन्हें और उनके अनुयाक्ययनों को लुभाने के क्लए दूसरी ओर से तमाम पासे
फेंके जा रहे थे । पैसे और ताक़त का प्रलोभन क्दया जा रहा था, पर वे भली-भांक्त जानते थे क्क भारत की सनातन धारा आयाक्तत धाराओं से अक्धक सवीकार्य, वैज्ञानिक एवं लोकतांत्रिक है ।
राषट्रहित सिवोपरि, समरसता की पैरोकारी
उनकी प्रगक्तशील और सर्वसमावेशी सोच की झलक इस बात से भी क्मलती है क्क उत्हनोंिे आरक्षण जैसी वयवस्ा को जारी रखने के क्लए हर दस वर्ष बाद आकलन-क्वशलेषण का प्रावधान रखा था । यह जाक्त-वर्ग-समुदाय से देशक्हत को ऊपर रखने वाला व्यक्त ही कर सकता है । अचछा होता क्क उनके नाम पर राजनीक्त करने वाले तमाम दल और नेता उनके क्वचारनों को सही मायने में आतमसात करते और उनकी बौक्द्धक- राजनीक्तक दृन्ष्ट से सीख लेकर समरस समाज की संकलपिा को साकार करते । �
vxLr 2025 31