संपादकीय
विपक्ष और राजनीति yks
कतान्त्रिक प्रक्रिया वाले देश की संसद में क्वपक्ष की भूक्मका सत्ा पक्ष द्ारा क्कए जा रहे काययों पर क्िगाह रखना, जनसरोकार से जुड़े प्रश्नों पर सत्ा पक्ष का धयाि क्दलाना और अन्य आवशयक मुद्दों पर अपना क्वरोध प्रकट करने की होती है । क्वपक्ष की यह सवाभाक्वक भूक्मका होती है क्क वयवस्ा को बनाए रखते हुए सरकार का क्वरोध करे । यहां यह भी धयाि रखना होगा क्क सरकार से लेकर क्वपक्ष की भूक्मका पूरी तरह संक्वधान की सीमा से बंधी होती है और पूरी वयवसस्ा संक्वधान के अनुरूप चलती है । राजनीक्तक कारणनों से क्वपक्ष का क्वरोध मुद्दों पर होता है, पर यह क्वरोध लोकक्हत के क्वरुद्ध जाकर नहीं होना चाक्हए । राष्ट्र और समाज के क्लए सकारातमक क्वरोध अक्त आवशयक है, पर क्वरोध के क्लए ही क्वरोध करना है, तब क्वपक्ष के सामने संसद से लेकर जनता के बीच जो प्रश् उभरते हैं, उनका उत्र देने में क्वपक्ष नाकाम क्सद्ध होता है ।
गत जुलाई माह में प्रारमभ हुए सरि में कांग्ेस और सहयोगी दलनों ने सदन में क्वपक्ष की भूक्मका का क्जस तरह से क्िर्वहन क्कया, उससे मानसून सरि की सार्थकता प्रभाक्वत हुई है । सरि के दौरान कांग्ेस सक्हत अन्य राष्ट्रीय एवं क्षेरिीय दलनों के नेताओं ने संसद के अंदर लगातार हंगामा क्कया, क्जसके कारण कई बार दोिनों सदन को स्थगित करना पड़ा । क्वपक्ष द्ारा क्जि मुद्दों को लेकर हंगामा क्कया गया, उनके पहलगाम हमला, ऑपरेशन क्संदूर, युद्धक्वराम, भारत-पाक वयापार संबंध, अमेरिकी राष्ट्रपक्त डोनालड ट्ररंप के बयािनों के साथ ही क्बहार में मतदाता सूची के क्लए चलाए जा रहे क्वशेष पुनरीक्षण अक्भयान जैसे मुद्े शाक्मल थे । दक्लत, क्पछड़े, आक्दवासी एवं गरीब जनता से जुड़ा कोई भी मुद्ा क्वपक्ष के पास नहीं था । सरि प्रारमभ होने से पहले क्वपक्षी दलनों को ऐसा प्रतीत हो रहा था क्क वह भ्ामक तथ्यों पर आधारित मुद्दों के आधार पर केंद्र सरकार को घेरने में सफल होगी । लेक्कि ऐसा नहीं हुआ । पहलगाम हमला, ऑपरेशन क्संदूर, युद्धक्वराम, अमेरिकी राष्ट्रपक्त के दावनों पर सरकार ने पूरी
न्स्क्त सपष्ट कर दी । सरकार द्ारा दी गई जानकारी देश में रहने वाली आम जनता को तो समझ में आ गई, लेक्कि क्वपक्ष और क्वपक्ष के नेताओं को समझ नहीं आई । क्वपक्ष के तमाम दावनों का सच संसद के दोिनों सदिनों में सामने आ गया । मुद्दाविहीन क्वपक्ष की राजनीक्त पर दृन्ष्ट डाली जाए तो कांग्ेस सक्हत अन्य क्वपक्षी दल राजनीक्तक मुद्दों के अभाव में व्यक्तगत हमले की राजनीक्त कर रहे हैं । इनका नेतृतव कांग्ेस नेता राहुल गांधी के हा्नों में है ।
प्रधानमंरिी नरेंद्र मोदी ने 2014 में जब पद संभाला था, उसके बाद से कांग्ेस नेता एवं लोकसभा में नेता प्रक्तपक्ष राहुल गांधी नकारातमक राजनीक्त का उदाहरण प्रसतुत करते आ रहे हैं । क्पछले एक दशक के दौरान कई अवसर पर राहुल गांधी को आम जनता के साथ ही न्यायालय में शर्मिंदा भी होना पड़ा । इसके बाद भी वह भ्ामक, असतय एवं व्यक्तगत आरोपनों की राजनीक्त को पुष्ट करते रहे हैं । राहुल गांधी के सुर से सुर क्मलाने वाले उनके सहयोगी भी यह बताने की न्स्क्त में नहीं हैं क्क आक्खर लोकतंरि में क्वपक्ष की ्या यही भूक्मका होती है? असतय तथ्यों पर आधारित आरोपनों की राजनीक्त के कारण ही हाल ही उच्चतम न्यायालय ने फटकार लगाई, क्जसके क्वरोध में कांग्ेस सांसद क्प्रयंका गांधी ने न्यायालय पर ही प्रश् लगा क्दया । इससे समझा जा सकता है क्क दक्लत, क्पछड़ा, आक्दवासी एवं अन्य लोगनों के कलयाण का दावा करने वाले कांग्ेस नेताओं की मािक्सकता ्या है? 2024 के लोकसभा चुनाव में क्वपक्ष ने अफवाह फैलाई क्क भाजपा संक्वधान बदल देगी, क्जसका कोई आधार नहीं था । भ्म फैलाकर सीट जीतने वाले कांग्ेस और उनके सहयोगी पुनः यही प्रक्रिया क्बहार में दोहराने की चेष्टा में जुटे हुए हैं । ऐसे में दक्लत, क्पछड़े, वंक्चत, आक्दवासी एवं गरीब जनता को कांग्ेस जैसे दलनों से सचेत रहने की आवशयकता है । क्बहार सक्हत कई अन्य राज्यों में चुनाव होने वाले हैं । इसीक्लए क्वपक्ष क्फर से भ्म एवं असतय तथ्यों पर आधारित व्यक्तगत हमलनों वाली राजनीक्त में जुट गया है ।
vxLr 2025 3