हजार दलित समाज के बच्चों को शिक्ा दी जाती थी । इस संदर्भ में यह भी धयान रखना चाहिए डा . आंबेडकर को छात्रवृठत् देने ्वाले भी यही बड़ौदा नरेश थे , जो मूल रूप से आर्य समाज की ठ्वचारधारा से प्रभाठ्वत थे ।
्वततिमान समय में कांग्रेस के नेता चाहे कितनी ही डींगें मार लें कि उनके नेता महातमा गांधी ने दलितों के उद्धार के लिए ठ्वरेष कार्य किया था । पर सच यह है कि दलित समाज का उद्धार करना कांग्रेस का मौलिक चिंतन नहीं था । महातमा गांधी भी अपने मौलिक चिंतन में अछूतों के प्रति किसी प्रकार से भी उदार नहीं थे । जब कोई वयषकत या कोई संगठन किसी उधारी मानसिकता या सोच या चिंतन के आधार पर कार्य करता है तो उसके चिंतन का कोई उललेखनीय प्रभा्व दिखाई नहीं देता है । यही कारण रहा कि कांग्रेस के महातमा गांधी के दलित
कलयाण के कायगों का कोई ठ्वरेष प्रभा्व दिखाई नहीं दिया ।
कांग्रेस को दलितों के उद्धार के लिए प्रेरित करने ्वाले आर्य समाज के बड़े नेता महातमा मुंशीराम अर्थात स्वामी श्द्धानंद जी महाराज थे , जिनहोंने 1913 में दलितोद्धार सभा का गठन किया था । अमृतसर के कांग्रेस अठध्वेशन में 27 दिसंबर 1919 को उनहोंने इस ठ्वषय को कांग्रेस के मंच से मुखय रूप से उठाया था और गांधी जी को इस बात के लिए प्रेरित किया था कि ्वह दलितों के उद्धार के लिए ठ्वरेष कार्य करें । यहीं महातमा गांधी को स्वामी श्द्धानंद जी के माधयम से दलितों के लिए कुछ कार्य करने की प्रेरणा मिली । उनहोंने जो कुछ भी किया ्वह के्वल समाज को दिखाने के लिए किया । कोई मौलिक योजना उनके पास ऐसी नहीं थी , जिससे दलितों का कलयाण हो सके या ्वह उनहें समाज में सम्मानजनक सथान दिला सकें ।
्वततिमान समय में राजनीतिक दलों को बड़ौदा नरेश और आर्य राजा महेंद्र प्रताप के दलितों के कलयाण संबंधी कायगों से प्रेरणा लेनी चाहिए । आज देश में राजयसभा और लोकसभा के कुल मिलाकर लगभग आठ सौ सांसद हैं । पर उनमें से कोई एक भी राजा महेंद्र प्रताप या महाराजा बड़ौदा बनने का साहस नहीं रखता । स्वामी श्द्धानंद जी महाराज जैसे महापुरुषों का अनुकरण तो ्वह कभी कर ही नहीं सकते हैं । इनकी राजनीतिक इचछारषकत के्वल यहीं तक है कि ्वह किसी प्रकार हाथ उठाने ्वाले सांसद बनकर लोकसभा या राजयसभा में जाकर बैठ जाएं । इस प्रकार देश का ्वततिमान लोकतांठत्क ढांचा भी राजनीतिक गुलामों को जनम देने में सहायक हुआ है ।
कांग्रेस ने कभी भी दलित से मुसलमान या ईसाई बने लोगों को फिर से हिंदू बनाने का काम नहीं किया । जो लोग हिंदू दलित से इसलाम या ईसाइयत में दीठक्त हो गए , उनहें कांग्रेस ने जाने दिया ।
इस प्रकार दलितों को ही मिटाकर और उनहें ठ्वधमटी बन जाने देने की खुली छूट देकर कांग्रेस ने देश को तोड़ने की प्र्वृठत् को भी बढ़ावा दिया ।
इसके ठ्वपरीत स्वामी श्द्धानंद जी महाराज ने दलितों को आर्य समाज में लाकर उनहें संसकारित बनाने का कार्य किया । ऐसा करने के पीछे स्वामी जी महाराज का एक ही उद्ेशय था कि जब ्वह आर्य समाज में दीठक्त हो जाएंगे तो हिंदू समाज के लोग उनहें मंदिरों में प्र्वेश करने की अनुमति देंगे । पर ऐसा हुआ नहीं । तब स्वामी श्द्धानंद जी ने बहुत दुखी होकर “ लीडर ” में 11 मई 1924 को लिखा था कि इसका मतलब यह है कि दलित वर्गों का कोई भी आदमी जब तक हिंदू समाज और धर्म का परितयाग नहीं करेगा तब तक अपनी सामाजिक अक्मताओं से छुटकारा नहीं पा सकता ।
उनहोंने ‘ हिंदू संगठन ’ में ( 1924 ) लिखा था कि जो लोग अपने ही समाज के एक तिहाई लोगों को गुलाम बनाए बनाए हुए हैं और उनहें पैरों तले कुचल रहे हैं , उनहें ठ्वदेशियों द्ारा किए गए अतयाचारों के ठ्वरुद्ध शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है । स्वामी जी महाराज ने मद्रास में एक ठ्वराल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हिंदुओ ! अपने दलित कहे जाने ्वाले बंधुओं को मान-सम्मान देकर उनहें अपना अठभन् अंग समझो । असपृशयता का परितयाग करो । यह पाप है और यह रोग तुम्हें ले डूबेगा । तुम यदि आज इनहें नहीं अपनाओगे तो फिर एक समय ऐसा आएगा जब तुम इनहें अपने में मिलाना चाहोगे परंतु यह तुम्हारे निकट नहीं आएंगे ।
स्वामी श्द्धानंद जी महाराज का उपरोकत कथन आज सतय सिद्ध हो रहा है । दलित ्वगति को लुभा कर मतांतरित करने के लिए इसलाम और ईसाइयत पूरी तरह सक्रिय हैं । एक प्रकार से दलितों को इन दोनों ठ्वदेशी धमाति्वलंबियों को पट्टे पर दे दिया गया । अपने ही लोग अर्थात अपने ही समाज के दलित जब मुषसलम या ईसाई बनते हैं तो ्वह भारत के लोगों के प्रति और भारतीयता के प्रति बहुत ही अधिक दुभाति्व रखते देखे जाते हैं । समय अभी भी है यदि अब भी हमने षसथठत पररषसथठतयों को संभाल लिया तो आज भी एक मजबूत और सशकत भारत का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं । �
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