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करा कराकर सम्मानित लोगों को अपमानित करने की प्रक्रिया को तेजी से चलाया , जिस पर बसपा की नेता माया्वती का भी खुला समर्थन उनहें मिलता रहा । प्रतिशोध की इस भा्वना से समाज में लोगों में जातिगत दूरियां बढ़ीं और एक नई ठ्वसंगति ने जनम लिया , परिणामस्वरूप लोगों ने बसपा को सत्ा से दूर कर दिया । बसपा ने भी के्वल सत्ा स्वार्थ ही देखा और दलितों के कंधों को प्रयोग करके अपनी राजनीतिक स्वार्थपूठत्ति की । बसपा की नेता माया्वती ने भी अपने दलित भाइयों को के्वल अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया । कहने का अभिप्राय है कि ्वह भी ्वोट की राजनीति से ऊपर उठ नहीं पाई ।
प्रश्न यह है कि ्वास्तव में देश में दलित कौन हैं ? और दलित होने का लाभ किसको और किस आधार पर दिया जा सकता है या दिया जाना चाहिए ?
इस ठ्वषय पर कभी स्वसथ चर्चा नहीं हुई । यहां पर जातियों या वर्गों को थोक के भा्व दलित शोषित मान लिया गया । यह तब हुआ , जब जाति , धर्म , लिंग से आधार पर नागरिकों के
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