April 2025_DA | Page 3

संपादकीय

जनकल्याण की दृष्टि और डया. आंबेडकर

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रत राष्ट्र बाबा साहब डा. भीम राव आंबेडकर का 134वां जन्मोतसव उतसव एवं आनंद के साथ मना रहा है । इस अवसर पर देश से लेकर विदेश तक डा. आंबेडकर से जुड़े सथानों पर भी अनेकों कार्यक्रमों का आरमोजन भी किया जा रहा है । अपनी हीरक जयंती मना रहे भारतीय गणतंत्र कमो जनकलराण की दृषष्टि से सर्व-शक्तमान का सवरूप देने में संविधान की अपनी निर्णायक भूमिका है, जिसकी रचना में डा. आंबेडकर का विशेष रमोगदान रहा । भारतीय समाज में वरापत कुरीतियों कमो समापत करने के साथ ही दलित, पिछड़े, वंचित वर्ग के सर्वकलराण के लिए डा. आंबेडकर ने जमो भी कार्य किए, उसका सुखद परिणाम अब बदलती सामाजिक, आर्थिक एवं शैवषिक पररषसथवतरों के रूप में दिखाई देने लगे हैं ।
देश की दलित समसरा कमो लेकर समाज के विभिन्न वगगों के चिंतकों, विचारकों तथा समाजशषसत्ररों का अलग- अलग विचार स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । लेकिन संपूर्णता में विचार करने पर यह बात स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आती है कि दलित समसरा केवल राजनीतिक या प्रशासनिक कदम उठाने से ही समापत नहीं हमोने वाली है । इसका समाधान सामाजिक सुधार एवं सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया कमो गति देकर ही पूर्ण रूप से किया जा सकता है । इसके लिए समाज में समानता, सवतंत्रता, बंधुता, प्रेम, दया और भाईचारे की भावना का विकास करके मानवीय मूलर से सभी कमो जमोड़ना ही हमोगा ।
डा. आंबेडकर के जीवन की पहली पुसतक-जाति प्रथा का उनमूलन में जातिवाद कमो समापत करने तथा सामाजिक विषमता दूर करने के लिए जिन तकगों कमो प्रसतुत किया है, उन तकगों का खंडन करने के लिए अब तक कमोई आगे नहीं आया है । डा. आंबेडकर ने देश के बुवधिजीवियों की इस भूमिका पर आशचर्य वर्त करते हुए कहा भी था कि देश में सवतंत्रता से पहले सामाजिक सुधार के आंदमोलन चल रहे थे, सवतंत्रता मिलने के साथ ही वह सभी आंदमोलन या तमो समापत हमो गए या कर दिए गए या फिर उनकी दिशा
ही बदल दी गई । इसके कारण समाज सुधार का काम देश में अधूरा रह गया और सामाजिक विसंगतियां अपनी जगह पर बनी रही । देश की राजनीतिक सवतंत्रता का अर्थ, देश संचालकों ने सभी तरह की समसराओं से मुक्त पाना मान लिया था ।
प्रजातंत्रिक वरवसथा में विशवास करने वाली कमोई भी सरकार अपने नागरिकों के लिए कलराणकारी रमोजना घमोवषत करती है, तमो ऐसी घमोषणा उसकी राजनीतिक मजबूरी हुआ करती है । चूंकि प्रजातंत्र में प्रतरेक वरष्त के मत की कीमत बराबर है । इसलिए राजनीतिक दलों द्ारा सरकार बनाने के बाद ऐसा करना सवाभाविक है । लेकिन ्रा इसके लिए संविधान और संवैधानिक वरवसथा कमो अनदेखा किया जाएगा? या इसके लिए राजर की सरकार अपनी हठधर्मिता का प्रदर्शन करके येन-केन-प्रकारेण अपने संवैधानिक दायितरों कमो पूरा करने के सथान पर वमोटि बैंक की दृषष्टि से निर्णय लेगी?
यह प्रश्न कना्यटिक सरकार द्ारा मुषसलम समुदाय कमो दिए गए चार प्रतिशत आरषिण समबनधी कानून पारित हमोने के बाद बाद पैदा हुए हैं । कना्यटिक सरकार ने जिस तरह से मुषसलम समुदाय कमो आरषिण दिया और इसके लिए संविधान बदल देने जैसे किए गए दावे, कांग्ेस और उसके नेताओं की राजनीतिक हताशा और तनाव कमो दर्शाने के लिए काफी है । लमबे समय तक आरषिण के नाम पर दलित वमोटिों का शमोषण करने वाले विपषिी दल अब मुषसलम आरषिण के नाम पर अपनी खमोती हुई राजनीतिक भूमि कमो बचाने का प्रयास कर रहे हैं । लेकिन विपषिी दल शायद भूल गए हैं कि क्रिया की प्रतिक्रिया भी हमोती है । मात्र मुषसलम वमोटि हासिल करने के लिए किए जा रहे असंवैधानिक प्रयासों कमो आम जनमानस भी देख और समझ रहा है, जमो अपना निर्णय चुनाव के रण में स्पष्टता के साथ सुनाता भी है ।
डा. भीमराव रामजी आंबेडकर के जन्मोतसव की शुभकामनाओं के साथ
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