AGOMONI PRE PRINT agomoni_mod2609 | Page 41

दशहरा बडे ध म ध म से मन य ज त दीव ली और दशहर । इन सब त्योह रों से लग व है हम र बह त गहर ।। स्र पणख की न क कटी ज न से म रे गए खर – द ष ण । क्रोध से आग बब ल ह आ र वण, समझ न प य उसे ववभीषण ।। ब वद्ध ह ई भ्रष्ट, कर बैि सीत जी क हरण । न समझ को तो लेलेनी च ठहए थी प्रभ की शरण ।। अशोक व ठटक मे शमलने आए जब हन म न । दे वलोक मे तो तभी होगय थ ये एल न ।। घमुंडी है , नहीुं छोडेग अपन क्जद्दीपन । प्रभ र म के ही ह थों गव एुंग अपन जीवन ।। ज्ञ नी थ , बलश ली थ , थ वेदों क ज्ञ त । अपनी ही क्जद पर अड , समझ बैि ख द को ववध त ।। ऐसे प पी क तो होन थ यही अुंत, अवत र बन कर जन्म लेते हैं इसीशलए मह प रुष सुंत ।। मुंदोदरी ने दी थी उसे सीख अछत उतम , नहीुं कोई स ध रण प रुष , ये तो हैं मय शद प रषोतम ।। नहीुं म न अहुं क री , ववद्ध न होकर भी नहीुं थी ववजडम । समझ नहीुं सक लील र म की , छोडी उन्होने जब ककुंगडम ।। द र ू दशी गर होत तो समझ ज त , टूट थ जब शशव धन ष । धरती पर अवतररत हो च के हैं , श्री र म मह प रुष ।। अहुं क र की भ वन कभी न मन मे ल न , सद आदर भ व से प्रभ के आगे शीश झ क न ।। प्रतीक स्वरूप है इस तरह र वण को जल न । असली मकसद तो है , भ वी पीढी क चररत्र छनम शण कर न ।।